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टिप्पणियाँ
दी गई है अर्थात् स्वयंसेवी संगठनोंके सम्बन्धमें जारी की गई निषेधाज्ञाका उल्लंघन। सम्भव है इस तरहकी पाबन्दियाँ हटा दी जायें या कदाचित् इनमें कुछ ढील कर दी जाये। दूसरी तरहकी आज्ञाएँ भी हैं जिनका उल्लंघन किया जा सकता है, जैसे १४४ धाराके अन्तर्गत जारी किये गये हुक्म। इसलिए मेरा सुझाव है कि स्वयंसेवी संगठनोंके प्रस्तावके बाद, हमें एक प्रस्ताव ऐसा स्वीकार करना चाहिए जिसमें कि सविनय अवज्ञा आन्दोलनको स्वीकृति दी जाये परन्तु इस आन्दोलनका स्वरूप क्या हो और वह किन-किन सीमाओंसे प्रतिबन्धित हो यह बात समय-समयपर कार्य समिति या आप स्वयं ही निर्धारित करें।
मैं नहीं जानता, अधिक संख्या में 'संविधानवादी' सज्जनोंके आनेका कांग्रेसके कार्य संचालनपर क्या प्रभाव पड़ेगा। पर मैं अपना यह विचार आपपर आग्रहपूर्वक व्यक्त करना चाहता हूँ कि इस समय कोई बातचीत नहीं की जानी चाहिए; बल्कि तबतक नहीं जबतक हम सविनय अवज्ञा संघर्ष में थोड़ा और आगे न बढ़ जायें। सरकारके साथ होनेवाली बातचीतमें अली बन्धु, दास, लालाजी और पण्डितजी शरीक किये जायें इतना ही काफी नहीं है बल्कि इस बात में उनकी राय ली जानी चाहिए कि सन्धि या सुलह करनेके लिए कौन-सा समय निर्धारित किया जाये। इसके अतिरिक्त सुलहकी बातचीतके लिए कांग्रेस और सरकार के बीच सम्मेलन ही एकमात्र माध्यम होना चाहिए। कांग्रेसको चाहिए कि वह सब दलोंके गैर-पदाधिकारी नेताओंको नामजद करे। नरम दलके नेताओंको कांग्रेस नामजद करे न कि सरकार। सरकार नेताओंको नामजद करके हमारे बीच हमेशा खराबी पैदा कर देती है। मेरा यह निश्चित मत है कि इस अधिवेशन में कांग्रेसका कोई प्रस्ताव ऐसा नहीं होना चाहिए जिसमें सरकारके साथ बातचीत का कोई उल्लेख हो या जिसमें इसके लिए सम्भावना व्यक्त की जाये। जरूरी समझा जानेपर आगे चलकर एक विशेष अधिवेशन बुलाया जा सकता है।
कुछ लोगोंका यह खयाल है कि अब हमें यह बात जोरोंसे उठाकर देशकी शक्ति और ध्यानको इन सवालोंपर ले जाना चाहिए कि हम हिन्दुस्तान के लिए किस तरहकी सरकार और कैसा संविधान चाहते हैं। मुझे यह खयाल पसन्द नहीं है। यह सवाल तो उस वक्त उठाया जाना चाहिए जब हमारा संघर्ष अपने अन्तिम चरणमें हो।
कुछ लोग समानान्तर सरकार बनानेकी बात कर रहे हैं। मैंने इस सम्बन्धमें आपसे कभी बातचीत नहीं की है; इसलिए मैं अपनी राय सामने रखनेकी हिम्मत तो कर रहा हूँ परन्तु बिना काफी सोच-विचारके। मैं समझता हूँ कि समानान्तर सरकार बनाना सम्भव ही नहीं है। जबतक कोई सरकार हिंसाके आधारपर चल रही है, हम समानान्तर सरकार बिना प्रतिहिंसाके नहीं बना