पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१८८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

७१. टिप्पणियाँ
बेहद आशावादी

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी सत्याग्रहका सही-सही ज्ञान रखनेवाले अध्येता हैं। दक्षिण आफ्रिका में सत्याग्रह शुरू किये जाने के समयसे ही उन्होंने इसे समझना शुरू कर दिया था। मेरी राय में वे सत्याग्रह-विज्ञानको जितनी अच्छी तरह समझते-बूझते हैं शायद उतनी अच्छी तरह दूसरा कोई नहीं समझता। वे इसपर बरसोंसे अमल करनेकी कोशिश करते चले आ रहे हैं। इसलिए जब उनके सामने जेल जानेका मौका आया तो वे एक क्षण के लिए भी आगा-पीछा किये बिना जेल चले गये। यद्यपि वे मद्रासमें आन्दोलनका नेतृत्व अपने निराले और निरभिमान ढंगसे कर रहे थे, पर उन्होंने यह अनुभव किया कि [सम्भवतः] जेलमें रहकर वे मद्रासके आन्दोलनका नेतृत्व ज्यादा अच्छी तरह कर सकेंगे। ज्यों ही उन्हें तीन महीनेकी सादी कैदकी सजा सुनाई गई। त्यों ही उन्होंने एक पत्र लिखा और उसमें उन्होंने जिस आशावादिताका परिचय दिया, आशा है वह पाठकोंको रुचेगी। पत्र इस प्रकार है :

तीन महीनेकी सादी सजा तो बहुत ही कम है। और कहीं यदि इससे भी पहले आप स्वराज्य प्राप्त कर लें तब तो यह कोई बात ही नहीं है। मुझे आशा है कि जब में वापस लौटूंगा, आप स्वराज्यका काम पूरा कर चुके होंगे और अपने आहार-शास्त्रके अनुसन्धानके सामान्य काममें जुट जायेंगे।

यद्यपि मैं अनुभव करता हूँ कि स्वराज्य एक तरहसे तो आ ही गया है (और मेरा आशय जिस तरह से है वह भी महत्त्वपूर्ण है) किन्तु इस समय जो असाधारण परिस्थिति पैदा हो गई है उसके कारण मैं इतनी जल्दी अपने आहार-शास्त्र के अनुसन्धानके सामान्य काममें नहीं जुट पाऊँगा। जैसा कि मैंने कहा है यह पत्र गत मासकी २१ तारीखको सजा सुनाये जाने के तुरन्त बाद लिखा गया था। उसी दिन सजा मिलने से पहले यह नीचे दिया हुआ लम्बा पत्र लिखा गया था :

मुझे आपका पत्र और संलग्न प्रस्तावोंका मसविदा मिला।
मैं इस दावेको प्रस्तावमें डाले जानके पक्षमें नहीं हूँ कि हमने स्वराज्य बाह्य रूपमें तो नहीं पर सार रूपमें प्राप्त कर लिया है। मैं इस दावेका मतलब तो समझता हूँ लेकिन यह भी अनुभव करता हूँ कि यह बात आपके लेखोंमें बताई जानी चाहिए, इसे कांग्रेसके प्रस्तावोंका अंश न बनाया जाये।
मुझे किसी ऐसे प्रस्ताव विशेषका पता नहीं है जिसके द्वारा सामूहिक या व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलनकी स्वीकृति साफ शब्दोंमें दी गई हो। मैं सोचता हूँ कि इस विषयपर स्पष्ट प्रस्तावका होना आवश्यक और वांछनीय है। प्रस्तावोंके वर्तमान स्वरूपमें सिर्फ एक ही तरहकी सविनय अवज्ञाकी स्वीकृति