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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

दूसरी मिसाल

श्री महादेव देसाईकी धर्मपत्नी प्रयागमें हैं। वे स्वयं भी स्वयंसेविका बन गई हैं, वे सेवा करने के लिए जगह-जगह जाती हैं, दूसरे स्वयंसेवकोंको खाना पकाकर खिलाती हैं और अन्य प्रकारसे सहायता करती हैं एवं नित्य चरखा चलाती हैं। श्री महादेवभाईके गिरफ्तार होते ही उन्होंने मुझे एक पत्र भेजा, जिसे पढ़कर पाठक प्रसन्न होंगे। मैं इसी खयालसे उसे यहाँ दे रहा हूँ :[१]

उन्हें मेरा आशीर्वाद तो प्राप्त है ही। परन्तु मैं आशीर्वाद देनेवाला हूँ कौन? भारतकी स्त्रियोंको तो अपने ही तपोबलसे साहस मिल रहा है। कोई एक-दो मनुष्य जेल नहीं गये हैं, कितने ही गये हैं और कितनों ही की धर्मपत्नियाँ साहस दिखा रही हैं। वे खुशी-खुशी अपने पतियोंको और दूसरे रिश्तेदारोंको जेल भेज रही हैं और खुद भी जेल जाने के लिए तैयार हो रही हैं। मुझे तारसे यह खबर मिल गई है कि श्री देसाईके साथ जो निष्ठुर व्यवहार किया जा रहा था वह अब बन्द कर दिया गया है। जेलमें कष्ट तो होते ही हैं। किन्तु धीरज और अपने विनययुक्त बरतावसे अनुचित कष्टोंका निवारण अवश्य ही होता है। ऐसा हो चाहे न हो; जेलके भयानकसे-भयानक कष्ट तो हमें सहन करने ही होंगे। इसके अतिरिक्त कोई दूसरी गति ही नहीं है।

मालवीयजीका पुत्र

पण्डित मदनमोहन मालवीयके सबसे छोटे पुत्र गोविन्द तथा उनके भतीजे कृष्णकान्त मालवीय पहले एक बार पकड़े जाकर सजा भोगकर रिहा हो चुके हैं। उन्हें व्याख्यान देने के कारण अब दुबारा गिरफ्तार किया गया है और डेढ़-डेढ़ वर्षकी कड़ी कैद की सजा देकर जेल भेज दिया गया है। इसे मैं भारतवर्षका सौभाग्य मानता हूँ। श्री मालवीयजी के पुत्रका असहयोगके कारण जेल जाना तो हमें अपनी प्राचीन धर्मकथाओंकी याद दिलाता है। भाई गोविन्दने मालवीयजीसे अनुमति प्राप्त करनेकी पूरी कोशिश की। उन्होंने जहाँतक बना अपने पूज्य पिताकी इच्छाका मान रखा। पिताने भी पुत्रको पूरी स्वतन्त्रता दी। जब पण्डित जवाहरलाल नेहरू और अन्य लोगोंके पकड़े जानेपर श्री गोविन्दसे न रहा गया तब उन्होंने अपने पिताको एक बहुत ही विनययुक्त पत्र लिखा और रणांगणमें कूद पड़े। मैं जानता हूँ कि इससे श्री गोविन्दकी पितृभक्ति में रत्ती भर भी कमी नहीं हुई है। मुझे दृढ़ विश्वास है कि पण्डितजीके मनमें भी श्री गोविन्दके प्रति इस कामके कारण तनिक भी रोष नहीं है। इन पिता और पुत्रका सम्बन्ध ऐसा ही मीठा रहा है और रहेगा। इस प्रकार इस स्वराज्य-यज्ञमें सब लोग अपनी-अपनी अन्तरात्मा के आह्वानको मानने लग गये हैं और हम पिता और पुत्रको जुदा-जुदा मैदानोंमें देख रहे हैं। ये सब धर्मजागृति—स्वराज्य—के ही चिह्न हैं।

  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें दुर्गाबहनने गांधीजीसे आशीर्वाद भी माँगा था।