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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय


आप लोगोंको किसलिए मरवाते हैं?

मैं नहीं मरवाता। लोगोंको मरनेमें आनन्द आता है; इसलिए वे अपने देश अथवा धर्मके निमित्त मरने को तैयार हो जाते हैं।

आपके साथी बूट और अंग्रेजी पहनावा क्यों पहनते हैं?

इससे मेरी सहिष्णुता प्रकट होती है। और उन सज्जनोंके साथ रहते हुए भी मैं उन्हें प्रेमपूर्वक यह बताना चाहता हूँ कि भारतमें न तो बूटोंकी जरूरत है और न अंग्रेजी पहनावे की।

आप लोगोंके धर्ममें दखल क्यों देते हैं?

मैं किसीके धर्म में दखल नहीं देता। लोग इतने भोले-भाले भी नहीं हैं कि मुझे दखल देने दें। हाँ, सब धर्मोंके जो सामान्य सिद्धान्त हैं उन्हें मैं जरूर लोगोंके सामने उपस्थित करता हूँ और करते रहना चाहता हूँ।

हवामें न उड़ जाये!

सविनय अवज्ञाकी तेज हवा मालूम तो बहुत अच्छी और पुष्टिकर होती है; परन्तु हमें यह न भूल जाना चाहिए कि कहीं इस हवामें खादी बह न जाये, सूत उड़ न जाये। जो लोग खादी-प्रचारका काम कर रहे हैं वे स्वयंसेवकोंमें अपना नाम अवश्य लिखायें; परन्तु चरखे और खादीको न भूलें। उन्हें खुद आगे बढ़कर गिरफ्तार हो जानेकी आवश्यकता नहीं है। उन्हें सन्तरीकी तरह काम करना है। वे जब रक्षा करनेका समय आये तब बाहर आयें अन्यथा अपने जिम्मे किये गये काममें लगे रहें। जो लोग स्वदेशीके प्रचारमें दत्तचित्त हैं वे तो खादी बेचते हुए अथवा चरखा चलाते हुए ही गिरफ्तार हों। यदि स्वदेशीसे भिन्न कामोंमें लगे हुए जेल जानेवाले लोग कम पड़ जायें तो स्वदेशी के प्रचारका काम करनेवाले लोगोंका मददके लिए आगे आना दूसरी बात है। सच्चा सिपाही तो वही है जो अपनी जगहपर ही लड़ता हुआ मरता है। अपने कर्तव्यका पालन करते हुए मर जाना ही श्रेयस्कर है; दूसरेका काम हाथमें लेना खतरनाक है।[१]

{खादीकी प्रतिज्ञा

आश्चर्यकी बात है कि कांग्रेसने स्वयंसेवकोंके लिए जो प्रतिज्ञा निश्चित की है, उसकी खादी पहनने की शर्त बहुतोंको कठिन मालूम होती है। असलमें तो विचारमें भी शान्ति धारण किये रहने और पीटे जानेपर भी मनमें क्रोध न लाने की शर्त कठिन लगनी चाहिए। तथापि खादी पहनने की बात विषम जान पड़ती है, इसका कारण तो यही हो सकता है कि हम इस शर्तको न निभायें तो सब लोगोंको साफ दिखाई दे जायेगा और हम किसी दूसरेको अथवा स्वयं अपनेको धोखा नहीं दे पायेंगे। मेरी सलाह तो यह है कि हमारा खादीके विषयमें जितना सावधान रहना आवश्यक है हमें उतना ही सावधान अन्य विषयोंमें भी रहना चाहिए। खादीकी शर्त का अर्थ कुछ अनिश्चित रह गया है। परन्तु इसका अर्थ तो एक ही हो सकता है। यह शर्त हमारे

  1. स्वधर्में निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः। भगवद्गीता, ३-३५।