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खिलाफत परिषद्

और रोलर घुमाना बाकी है। अब भी इस एकताको मजबूत करने के लिए जितने उपाय काममें लाये जाने चाहिए उन्हें काममें लानेकी बहुत जरूरत है। और इन उपायोंको हम अच्छी तरहसे जान गये हैं। ये निम्नलिखित हैं :

१. परस्पर एक-दूसरेके सुख-दुःखमें भाग लेना।

२. एक-दूसरेकी भावनाओंका पूरा-पूरा ध्यान रखना।

३. परस्पर एक-दूसरे के प्रति भयको त्यागना।

४. जिनमें एक-दूसरेके हित जुड़े हुए दिखाई दें, ऐसे कार्योंको हाथमें लेना।

खिलाफतने हमें पहली शर्तका पालन करनेका मार्ग दिखाया है।

हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप किये बिना एक-दूसरेके प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट कर सकते हैं।

हिन्दू ज्यादा हैं और मुसलमान कम, इस बातसे मुसलमानोंको नहीं डरना चाहिए। और मुसलमान मुस्लिम राज्योंसे सहायता प्राप्त करके हिन्दुओंको दबायेंगे, यह भय हिन्दुओंको त्याग देना चाहिए।

स्वदेशी और चरखा सबके लिए समान हितकी वस्तुएँ हैं। अगर हिन्दू और मुसलमान समान रूपसे उनके महत्त्व और लाभको समझ जायें तो दोनोंकी एकता में बहुत अधिक वृद्धि हो जायेगी।

लेकिन दोनोंकी एकतामें वृद्धि करनेका सबसे अच्छा उपाय यह है कि हिन्दू और मुसलमान दोनों छोटी-छोटी कौमोंकी रक्षा करने लगें। दोनों पारसियों, यहूदियों और ईसाइयोंसे प्रेम करें, उनका सम्मान करें, उनकी रक्षा करें और स्वप्नमें भी उन्हें सताने अथवा उनके साथ जोर-जबरदस्ती करनेका विचार न करें। ऐसा करते हुए दोनोंको एक-दूसरेकी रक्षा करने और सेवा करनेकी आदत पड़ जायेगी। जिस हदतक हममें सेवाभाव बढ़ेगा उस हदतक हम एकदिल होंगे।

मनुष्य जिस हदतक अपना कर्त्तव्य निभाता है उस हदतक वह प्रेमपात्र बनता है। अधिकारोंकी ही खोजमें घूमनेवाला अपने कर्त्तव्यसे चूक जाता है और अन्ततः वही अत्याचारी कहा जाता है। हम सरकारका विरोध करते हैं क्योंकि सरकार केवल अपने अधिकारोंसे परिचित है। वह हमारे प्रति अपने कर्त्तव्यका तो विचारतक नहीं करती।

यदि हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरेके सरपरस्त अथवा शुभचिन्तक बननेकी कोशिश करेंगे तो वे अन्ततः अवश्यमेव एक-दूसरे के शत्रु बन जायेंगे। लेकिन यदि वे एक-दूसरेके सेवक बनेंगे तो उनकी स्नेहकी गांठ दिन-प्रतिदिन मजबूत होती जायेगी और वह अन्तमें न तो तोड़े टूटेगी, न जलाये जलेगी और न गलाये गलेगी। हिन्दू और मुसलमान जब ऐसे विलक्षण बन्धन में बँध जायेंगे तभी स्वराज्य-कुसुम पूरी तरहसे खिलेगा। और तब हमें इन सब बातोंपर विचार करनेकी भी कोई जरूरत न रहेगी कि हमें पूर्ण स्वतन्त्रता चाहिए अथवा हमें अंग्रेजोंसे मंत्रीकी भी आकांक्षा है अथवा हम तलवारके बलपर स्वराज्य प्राप्त करेंगे या शान्तिपूर्ण ढंगसे। जब ऐसा शुभ अवसर आयेगा तब हमें मनचाही वस्तु उपलब्ध हो जायेगी। इसलिए हम सबका—