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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

कैदियोंको छुड़ाने और स्वराज्य प्राप्त करनेका यश लेंगे अथवा जेल जायेंगे? क्या वे गुस्सा किये बिना मार खायेंगे और मरेंगे? यदि हम सब बातें समझें तो यह कार्य बच्चोंका खेल है; किन्तु यदि न समझें तो पहाड़ काटने के समान कठिन है।

हम मन, वचन और कायासे शान्त रहें, भंगीको भी सगे भाईके समान मानें; पारसियों, यहूदियों, ईसाइयों अथवा सहयोगियोंके साथ भी शिष्टताका व्यवहार करें, अंग्रेज पड़ोसी के प्रति भी क्रोध न करें, शुद्ध स्वदेशीका पालन करें। खादीके ही कपड़े पहनें, सत्यके लिए और सत्यका पालन करते हुए जेल जायें, मार खायें और मरें—यह हमारा कर्त्तव्य है।

इस कठिन प्रतिज्ञाका पालन करते हुए जो मरेगा वस्तुतः वही जीवित रहेगा और देशको जीवित रखेगा। अन्य बहुतसे लोग मृत्युको प्राप्त हुए हैं, अनेकने अपने सिर फुड़वाये हैं और अनेक जेल गये हैं। उन्होंने हिन्दुस्तानकी श्री वृद्धि नहीं की है, उसे तारा नहीं है, बल्कि उसको बदनाम किया है। गुनहगारोंके कष्टों, और आँसुओंसे हिन्दुस्तानका रोग मिटनेवाला नहीं। उसके रोगका उपचार तो निर्दोषोंका बलिदान है।

रावण सती सीताको पकड़कर ले गया और उससे राक्षस-राज्यका नाश हो गया। यदि वह किसी वेश्याको पकड़कर ले गया होता तो आज जगत् उसे वेश्याकी पूजा करनेके लिए याद न करता। अगर दुष्टको जरूरतसे ज्यादा दण्ड मिले तो जगत् उसकी चर्चा तक नहीं करता। लेकिन यदि निर्दोषका बाल भी बांका हो तो उसे वह एक क्षण भी सहन नहीं करता।

लेकिन मैंने क्या देखा?

गुजरातके एक प्रतिष्ठित प्रतिनिधिने कांग्रेस अधिवेशनमें सम्मिलित होनेके लिए दूसरेके टिकटकी चोरी की। वे भाई पकड़ लिये गये और स्वयंसेवक उन्हें मेरे पास लाये। मैं लज्जित हुआ। मुझे गुजरातसे भाग जाना ही श्रेयस्कर प्रतीत हुआ। स्वराज्य के लिए प्रयत्न करनेसे क्या लाभ—पल-भरके लिए ऐसा दुर्बल विचार मेरे मनमें आ गया। अगर यही भाई जेल जायें तो उससे जनताको क्या लाभ होगा? मैंने इस घटनाको उस समय भी तुच्छ नहीं माना था और आज भी नहीं मानता हूँ। शरीरमें एक छोटी-सी फुन्सी भी जानलेवा बन सकती है। पचास मन दूध संखियेकी एक छोटीसी डली पड़ जानेसे व्यर्थ हो जाता है। अगर तुरन्त दुहा दूध मलसे छू जाता है तो हम उसे फेंक देते हैं।

गुजरातियो, आप स्त्री हों अथवा पुरुष, आप चेतें। कमाये हुए धनको पल-भर में खो न बैठें। यह लड़ाई असत्यकी नहीं है। इसमें पाखण्ड नहीं चलता। इसमें दगा नहीं चलती। आपकी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। नम्रता, सभ्यता, शौर्य, उदारता, सद्विचार, सद्भाव और सद्‍व्यवहारसे ही यह लड़ाई जीती जा सकती है।

जो अपवित्र हैं वे भले ही उससे दूर रहें। अपवित्रता तो संसार-भरमें है, इसलिए वह गुजरातमें भी रहेगी ही। लेकिन पवित्रतामें अपवित्रताकी मिलावट नहीं चल सकती। जिनसे सत्यका पालन नहीं होता वे भले ही अलग रहें। उन्हें तो अलग रहना ही चाहिए। जिनसे सच नहीं बोला जाता वे भले ही मौन रहें। उन्हें अगर बुरा सोचनेकी आदत होगी तो वह भी समय आनेपर चली जायेगी क्योंकि बादमें