६६. तार : देवदास गांधीको
अहमदाबाद
६ जनवरी, १९२२
आनन्द भवन
इलाहाबाद
कृष्णकान्त[१], खन्ना, सैयद मुहीउद्दीन और गोविन्दको उनके सौभाग्यपर बधाई।[२] आशा है स्वयंसेवकोंका ताँता बराबर बँधा रहेगा।
बापू
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७७९०) की फोटो-नकलसे।
६७. खूब किया, लेकिन क्या यह जारी रहेगा?
हम कह सकते हैं कि गुजरातने अच्छा काम करके दिखाया है।[३] उसने साढ़े तीन लाख रुपयेकी खादी के तम्बू ताने और पंडाल बनाये, बिजलीकी रोशनी की, सुन्दर प्रदर्शनीका आयोजन किया, भजन गाये, कीर्तन किये और हिन्दुस्तानके संगीतका गौरव प्रदर्शित किया। हिन्दू और मुसलमान साथ-साथ रहे और किसीने भी एक-दूसरेको कोई ऊँचा-नीचा शब्द नहीं कहा। गुजरातकी बालिकाएँ स्वयंसेविकाएँ बनीं। गुजरातके नौजवानोंने भंगियोंका काम किया और प्रतिनिधियोंकी सेवा की। स्त्रियोंकी विशाल सभा हुई, व्याख्यान हुए, कांग्रेसके पंडालमें अर्थशास्त्र के नियमोंका पालन करते हुए सभीने आवश्यकतानुसार ही भाषण दिये, किसीने भी लम्बा भाषण नहीं दिया और सरकारको चौंका देनेवाला और सरकार द्वारा आरम्भ की गई दमन-नीतिका जवाब देनेवाला प्रभावपूर्ण परन्तु मर्यादायुक्त प्रस्ताव पास किया।
यह सब करके गुजरातने अपना और हिन्दुस्तानका नाम उजागर किया है, इसमें तो किसीको कोई सन्देह नहीं हो सकता। लेकिन क्या आगे भी ऐसा ही होगा?
वीरताका दिखावा करनेमें तो कोई कसर नहीं रखी गई। वीरताकी बातें कहनेमें कोई कंजूसी नहीं दिखाई गई, लेकिन क्या लोग वीरताके कार्य भी करेंगे? क्या गुजरातके लोग बंगाल, संयुक्त प्रान्त और पंजाबके लोगोंसे होड़ कर सकेंगे? क्या वे