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६५. जिस समस्याके तत्काल हलकी जरूरत है

सरकारने इस समय जो समस्या हमारे सामने पैदा की है उसके सामने स्वराज्य, खिलाफत या पंजाबकी समस्याका स्थान गौण है। हमें पहले भाषणकी और मिल-बैठकर विचार करनेकी स्वतन्त्रता हासिल करनी ही चाहिए। उसके बाद ही हम अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकेंगे। बगलसे किये गये इस हमलेसे अगर सरकारका बस चले तो वह हमें मार सकती है। भाषण और गोष्ठीकी स्वतन्त्रताके मामलेमें हार मानने का मतलब यह होगा कि हमारा सारा प्रयत्न धूलमें मिल जायेगा। अगर सरकारको हमारी अहिंसात्मक गति-विधियोंको, भले ही वे गति-विधियाँ सरकारके अस्तित्वके लिए खतरनाक हों, विनष्ट करने दिया जाता है तो नरम दलके लोगों तकको अपना सारा काम बन्द कर देना पड़ेगा। इसलिए सबके हितोंको ध्यान में रखते हुए हमें इन मौलिक अधिकारोंकी रक्षा प्राणपणसे करनी चाहिए। हमें युवराजका स्वागत करनेके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और न हमें अपने स्वयंसेवक संगठनोंको तोड़ने के लिए या अपने उन कामोंको छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है जिन कामोंको हम अपने विकासके लिए उपयुक्त समझते हैं।

इन अधिकारों की रक्षाका सबसे शीघ्र फलदायी और सुरक्षित तरीका यह है कि हम इन प्रतिबन्धोंकी उपेक्षा करें। भले ही गोलियोंकी बौछारका सामना करना पड़े, हम सच बोलना नहीं छोड़ सकते, इसी तरह चाहे हमें बन्दूकोंकी संगीनोंका मुकाबला क्यों न करना पड़े हम अपना संगठनका अधिकार नहीं खो सकते। इन मौलिक अधिकारोंको प्राप्त करने के लिए कोई भी कीमत चुकाना बड़ी बात नहीं है। और इस मामलेमें कोई समझौता, बातचीत या सम्मेलन नहीं हो सकता। या सम्मेलन बुलाने और समझौता होनेसे पहले यह जरूरी है कि पाबन्दीके आदेश और संगठनोंको तोड़नेके हुक्म रद कर दिये जायें और जिन लोगोंको अहिंसात्मक गतिविधियोंके लिए गिरफ्तार किया गया है उन सबको छोड़ दिया जाये। अगर हम स्वतन्त्र व्यक्तियोंकी तरह नहीं रह सकते तो निस्सन्देह हमें सहर्ष मरनेके लिए तैयार रहना चाहिए।

काश, मैं हर आदमीको समझा सकता कि सविनय अवज्ञा प्रत्येक नागरिकका जन्मसिद्ध अधिकार है। अगर वह यह अधिकार छोड़ देगा तो मनुष्य ही नहीं रह जायेगा। सविनय अवज्ञासे कभी अराजकता नहीं पैदा हो सकती। हाँ, अपराधमूलक अवज्ञासे अराजकता पैदा हो सकती है। प्रत्येक राज्य ऐसी अपराधमूलक अवज्ञाको बलात् खतम करता है और अगर वह ऐसा नहीं करता तो वह स्वयं खतम हो जाता है। लेकिन सविनय अवज्ञाको दबाना तो मनुष्यकी अन्तरात्माको कैद करनेकी कोशिश करने जैसा है। सविनय अवज्ञासे तो शक्ति और पवित्रता बढ़ती है। सत्याग्रही शस्त्रोंका कभी इस्तेमाल नहीं करता और इसीलिए वह उस राज्यके लिए सर्वथा हानिरहित होता है जो लोकमतकी आवाज सुननेके लिए थोड़ा भी तैयार हो । हाँ, वह स्वेच्छाचारी राज्यके लिए खतरनाक होता है क्योंकि वह जिस उद्देश्यके लिए राज्यकी