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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

अपनी वाद-विवाद कुशलताका प्रयोग करते-करते किसी-न-किसी दिन हम ब्रिटिश पार्लियामेंटको यहाँतक प्रभावित कर सकेंगे कि भारतको स्वराज्य प्रदान करना कितना वांछनीय है। लेकिन उन्हें जल्द ही मालूम हो जायेगा कि तलवारकी स्थान-पूर्तिका एक उससे भी बढ़िया और अक्सीर साधन है और वह है—सविनय अवज्ञा। अब यह दिनपर-दिन अधिकाधिक स्पष्ट होता जाता है कि कानूनकी सविनय अवज्ञासे कष्टसहनका वह मार्ग तैयार होगा जिससे होकर भारतको अपने लक्ष्यतक पहुँचने के पहले अवश्य गुजरना होगा।

हमने अभी अपनी पूरी शक्ति प्रकट नहीं की है। मुसलमानों और हिन्दुओंमें अब भी अविश्वास कायम है। अछूत-लोगोंको अभी हिन्दुओंके स्पर्शकी आब नहीं पहुँची है। भारत के पारसी और ईसाइयोंको अभी यह निश्चय नहीं है कि स्वराज्य मिलनेपर उनका भविष्य क्या होगा। अभी हम अपने ही बनाये कानून-कायदोंकी पाबन्दी करना नहीं सीखे हैं और न उसकी जरूरत ही महसूस करते हैं। चरखेने अभी हमारे घरोंमें स्थायी रूपसे स्थान नहीं पाया है। खादी अभीतक राष्ट्रीय पोशाक नहीं हो पाई है। दूसरे शब्दोंमें यों कहें कि अभी हम आत्म-रक्षाकी कला और उसकी शर्तें नहीं समझ पाये हैं।

अभीतक भारतमें एक ऐसा जन-समाज मौजूद है जिसकी संख्या तो कम हो रही है पर जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। जो यह मानता है कि हिंसाके ही द्वारा स्वराज्य प्राप्त हो सकता है और इसलिए कहता है कि अहिंसा के साथ-साथ हिंसाको भी जारी रहने देना चाहिए अर्थात् हमारी यह अहिंसा या शान्ति, हिंसाकी पूर्वपीठिका और तैयारी समझी जानी चाहिए। जो लोग इन विचारोंके कायल हैं वे शायद यह न जानते हों कि ऐसा करना सारे संसारको धोखा देना है। हमारी प्रतिज्ञा तो हमसे यह अपेक्षा करती है कि जबतक हम उससे बँधे हुए हैं तबतक हम इस बातपर विश्वास करें कि अहिंसा ही सबसे शीघ्र स्वराज्य प्राप्त करानेका साधन है। ज्यों ही हमें यह विश्वास हो जाये कि स्वराज्य तो अहिंसाके द्वारा नहीं प्राप्त हो सकता या केवल हिंसासे ही प्राप्त हो सकता है, त्यों ही हमें अपनी प्रतिज्ञा रद कर देनी चाहिए—ऐसा करने के लिए हम बाध्य हैं। जबतक हमने अहिंसाकी प्रतिज्ञा ले रखी है तबतक वह हमारे लिए धर्म है। अभी अहिंसाका परीक्षण चल रहा है, इसलिए वह कार्योपयोगी भी है। परन्तु जबतक हम अपनी प्रतिज्ञासे बँधे हैं तबतक हम केवल अपने ही लिए अहिंसाको मानने और उसका पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं; बल्कि हम दूसरोंको अहिंसाके पालनके लिए तैयार करने और हिंसाका निषेध करने के लिए भी उतने ही बाध्य हैं। मुझे तो अब और भी अधिक विश्वास हो गया है कि हम अभी अपने लक्ष्यतक नहीं पहुँच पाये हैं, इसका कारण यह है कि खुद हम सब लोगोंने ही, जिन्होंने कि कांग्रेसके सिद्धान्तोंको स्वीकार किया है, हमेशा न तो वचन और कर्मके द्वारा शान्तिका पालन किया है और न विचारों और इरादोंमें शान्ति धारण करनेका प्रयत्न किया है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५-१-१९२२