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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

हुक्म भी जारी कर देती है पर वे आरामसे वहाँसे निकल आते हैं हालांकि उनकी वास्कटोंपर सोनेकी जंजीरें लटकी होती हैं। मैंने ऐसे अपराधी भी देखे हैं जिनपर जुर्माना किया गया था और जिनकी अँगुलियोंमें हीरेकी ऐसी कीमती अंगूठियाँ थीं जिनसे उनका जुर्माना पूरा वसूला जा सकता था, लेकिन अदालतसे जुर्माना दिये बिना बेरोक-टोक चले गये। इन सभी मामलोंमें वसूली तभी की गई जब कि उनके खिलाफ उनकी जायदाद की जब्ती या उसे बेचने के वारंट जारी किये गये। लेकिन इस समय असहयोग आन्दोलनकारियोंके खिलाफ जो कानून लागू किया जा रहा है उसमें कोई बन्धन नहीं है। उससे तो ऐसा लगता है कि भारतमें किसी एक अफसरकी मर्जी ही सारा कानून हो गई है। मेरा तो खयाल है कि सरकारकी ओरसे जो कुछ हुआ बताया जाता है उसमें कुछ बातें तो ऐसी हैं जो मार्शल लॉके अन्तर्गत भी इस तरह बेहिचक नहीं की जा सकती थीं। अफसोस है कि भारत सरकारको ऐसे आदमी मिल जाते हैं जिन्हें वह इतने गिरे हुए काम करा लेनेके लिए इस्तेमाल करती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५-१-१९२२

६४. स्वतन्त्रताकी पुकार

मौलाना हसरत मोहानीने कांग्रेसके मंचसे तथा मुस्लिम लीगके सभापतिकी हैसियतसे बड़ी हिम्मतके साथ आजादी के लिए लड़ाई ठानी।[१] लेकिन दोनों बार उन्होंने बड़े मजे में मुंहकी खाई। मौलाना साहब क्या चाहते थे, इसके विषयमें किसीको गलत खयाल नहीं हो सकता। बराबर की और हिस्सेदारकी हैसियतसे भी तथा खिलाफतका निपटारा अच्छी तरह हो जानेपर भी, वे अंग्रेज लोगोंके साथ किसी किस्मका ताल्लुक नहीं रखना चाहते। यह कहना ठीक नहीं होगा कि पूर्ण आजादीके बिना खिलाफतके मसलेका निपटारा कभी हो ही नहीं सकता। हम यहाँ सिद्धान्तकी चर्चा कर रहे हैं। इस बातपर तो सभी एकमत हैं कि यदि पूर्ण आजादी के बिना खिलाफतका सवाल हल नहीं हो सकता अर्थात् यदि अंग्रेज लोग मुसलमानी दुनियाकी उच्च आकांक्षाओंके प्रति विरोधभाव ही रखते रहे, तो हमारे लिए पूर्ण स्वतन्त्रताका आग्रह करनेके सिवाय दूसरा उपाय ही नहीं है। यदि ब्रिटेनको मुसलमानोंके साथ दोस्तीका बरताव करने के लिए राजी नहीं किया जा सकता तो भारत ब्रिटेनको अपनी नैतिक सहायता भी नहीं दे सकता और खुद उसे भी ब्रिटेनकी नैतिक और भौतिक सहायताके बिना अपना काम चलाना होगा।

परन्तु फर्ज कीजिए कि ग्रेट ब्रिटेन अपना रुख बदल दे—जैसा कि मैं जानता हूँ, हिन्दुस्तानको बलवान पाकर वह बदलेगा—तब भी पूरी आजादी के लिए जोर देते

  1. दिसम्बर १९२१ में कांग्रेस और मुस्लिम लीगके अहमदाबादमें हुए अधिवेशनोंमें पूर्ण स्वतंत्रताका लक्ष्य स्वीकार करानेके लिए।