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कानूनी लूट

मस्जिद जानेवालों की आश्चर्यजनक सहनशीलताने मस्जिदको और भी अधिक पवित्र बना दिया और यह सिद्ध कर दिया है कि हमारा संघर्ष धार्मिक है।

बिहारके कुछ भागोंमें भी अधिकारियोंने कोई बेहतर सलूक नहीं किया। सोनपुर थानाकी कांग्रेस कमेटीके मन्त्रीने लिखा है :

२१ दिसम्बर, १९२१को दोपहर बाद लगभग ३ बजे १० स्वयंसेवक कुछ कार्यकर्त्ताओंके साथ सड़कपर गश्त लगा रहे थे और दुकानदारोंसे २२ तारीखको युवराजके आगमनपर मुकम्मिल हड़ताल करनेके लिए कह रहे थे। जब ये लोग सोनपुर पुलिस स्टेशनके पास पहुँचे तो पुलिस सुपरिंटेंडेंट (श्री पार्किन) जिनकी यहाँ युवराजके आगमन के लिए नियुक्ति की गयी है, करीब १०० सिपाहियोंके साथ थानेके बाहर निकले और स्वयंसेवकोंसे उनके झंडे, बैज और उनके खावीके कपड़े तक छीन लिये और सारी चीजोंको फाड़कर चीर-चीर कर दिया।
इसके तत्काल बाद सुपरिटेंडेंट साहब कांग्रेसके दफ्तर में पहुँचे। उनके पीछे-पीछे सादे कपड़ों में हाथों में लाठी लिये कुछ सिपाही थे। कांग्रेस दफ्तर पहुँचनेपर उन्होंने सिपाहियों को दफ्तर लूट लेनेका हुक्म दिया; (उनके शब्द थे "मारो और लूटो"।) यह हुक्म मिलते ही सिपाहियोंने दफ्तरका दरवाजा तोड़ दिया, और स्वयंसेवकों को हटाकर दफ्तरके कमरेमें घुस गये। इसके बाद श्री पार्किनने दफ्तरकी पूरी तलाशी ली और एक सन्दूकका ताला तोड़ा जिसमें कुछ नकदी थी और रिकार्डवाली अलमारी भी तोड़ डाली। उसके बाद उन्होंने सब रिकार्ड, खादीके कपड़े, राष्ट्रीय कैलेंडर, तस्वीरें, बैज, खादीकी टोपियाँ और धार्मिक पुस्तकें जैसे 'रामायण' और 'गीता' वहाँसे हटाकर दफ्तरके सामने जला डालीं। वे करीब १२० रुपये भी उठा ले गये। यह रुपया जिला कांग्रेस कमेटीने बाढ़ग्रस्त लोगों में बाँटनेके लिए और राष्ट्रीय स्कूलके चन्देके लिए भेजा था।

बनारससे निम्नलिखित समाचार मिला है। इस समाचारसे कानून और व्यवस्थाके अनुसार चलनेका दम भरनेवाली इस सरकार द्वारा दिन दहाड़े की जा रही लूटका यह दुःखमय चित्र पूरा हो जाता है :

पिछले तीन दिनोंमें स्वयंसेवकोंने अपनेको गिरफ्तार करानेके लिए सड़कोंपर परेड नहीं की। सब मिलाकर करीब ५०० स्वयंसेवक गिरफ्तार किये गये। उनमें से अधिकांश २४ घंटे बाद छोड़ दिये गये या उनपर दस रुपये जुर्माना किया गया। जुर्माना अदा न करनेपर पुलिसने उनसे कम्बल, कोट, टोपी, जूते, घड़ियाँ आदि उतरवा लीं।

इस तरहके काम गुण्डों द्वारा किये जानेकी बात तो सुनी है। कानूनकी निगाहमें तो नागरिकोंकी सम्पत्ति और उनके शरीरको इतना पवित्र समझा जाता है कि उन्हें बिना कानूनी कार्रवाईके छुआ भी नहीं जा सकता। मैंने अदालतों में ऐसे लोग भी देखे हैं जिन्हें कर्जा चुकाना होता है और जिनके खिलाफ अदालत रकम अदायगीका