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६३. कानूनी लूट

हजारों असहयोगियोंको दिये जा रहे कारावासके दण्ड और कारावासके अनिवार्य कष्टोंकी बातसे मुझे खुशी होती है किन्तु यहाँ अब मैं जिन घटनाओंका उल्लेख कर रहा हूँ उनसे मुझे दुःख होता है, यद्यपि मैं जानता हूँ कि उनसे स्वराज्य पास आ रहा है। सरकार के बारेमें मैं इतना बुरा खयाल कभी नहीं बनाना चाहता था जितना उसके इन कार्योंके कारण मुझे बनाना पड़ रहा है।

कलकत्तेकी हड़ताल[१] इलाहाबादकी हड़तालकी तरह ही सम्पूर्ण थी। बम्बई में १७ नवम्बरको कुछ लोगोंने अपना होश खोकर जैसे पागलपनके कृत्य किये कलकत्तेके नागरिकोंने वैसा कुछ भी नहीं किया, यद्यपि लोगों द्वारा शान्ति भंग किये जानेका खतरा वहाँ सबसे ज्यादा था। उनकी शान्ति अनुकरणीय थी। उनके मन्त्री बाबू सातकौड़ीपति राय तथा सरदार लछमनसिंह और स्वामी विश्वानन्दको गिरफ्तार कर लिया गया था और जैसा कि मालूम होता है गिरफ्तारीका कारण सिर्फ यह था कि वे शान्ति बनाये रखने की कोशिश कर रहे थे। फिर भी लोग शान्त रहे। इसे देखकर तो ऐसा लगता है कि शीघ्र ही हम अपने देशवासियोंके विषयमें यह कह सकेंगे कि उन्होंने नेताओंके बिना ही अपना काम सुयोग्य रीतिसे करना सीख लिया है, या दूसरे शब्दोंमें, वे खुद ही अपने नेता बन गये हैं।

हड़तालको तोड़नेकी जी-तोड़ कोशिशोंके बावजूद लोगोंने अपनी इच्छासे हड़ताल रखी और भड़काने की कोशिशोंके बावजूद उन्होंने शान्ति कायम रखी, यह बात 'सिविल ' गार्ड के सदस्यों और यूरोपीयोंको बहुत खल गई है। स्पष्ट है कि इसका सारा दोष वाइसराय साहबपर है। उन्होंने युवराज महोदयको ऐसे समयपर बुलाया है जब कि उन्हें नहीं बुलाना चाहिए था। और जब उन्हें बुला लिया गया तो जहाँ-कहीं वे जा रहे हैं वाइसराय जनताको उनका स्वागत करनेके लिए मजबूर कर रहे हैं और इसमें असफल होनेपर वे ब्रिटिश नागरिकोंकी भावनाओंको यह कहकर भड़का रहे हैं कि यह बहिष्कार युवराज और ब्रिटिश जातिका खुल्लमखुल्ला अपमान है। जिस बातकी आशंका थी वही हुआ। पुलिस और सिविल गार्डने विभिन्न सरकारी ऐलानोंका यही मतलब निकाला कि अब उन्हें छूट मिल गई है और वे जो चाहें सो कर सकते हैं। उन्होंने दुकानें लूटीं। अगर 'सर्वेन्ट' में छपी खबरें सच हों तो ये लोग जूते पहने हुए मस्जिदोंमें घुसे और उन्होंने चोरियाँ भी की हैं। बेकसूर आदमियोंके चोटें लगीं और कुछने तो जानसे भी हाथ धोये। कलकत्तावासियोंने यह कानूनी अराजकता अत्यन्त सहनशीलताके साथ बरदाश्त की है। उन्होंने ठीक काम किया है। मेरी रायमें तो धर्मका अपमान करनेवालों के जूतोंसे मस्जिदकी पवित्रता भंग नहीं हुई।

  1. २४ दिसम्बर, १९२१ को।