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कांग्रेसका अधिवेशन और उसके बाद

हमारी पहचान इस बातसे नहीं होगी कि हमने क्या-क्या खाया-प्रिया है और किस-किसका स्पर्श किया है; बल्कि इस बात से होगी कि हमने किस-किसकी सेवा की है और किस-किस तरहसे की है। यदि हमने किसी भी विपत्तिग्रस्त और दुःखी मनुष्यकी सेवा की होगी तो वह अवश्य हमपर कृपा-दृष्टि डालेगा। जिस प्रकार हमें बुरे लोगों और बुरी बातों के संसर्ग से बचना चाहिए उसी प्रकार खराब, उत्तेजक और गन्दे खान-पानसे भी दूर रहना चाहिए। परन्तु हमें इन नियमोंकी महिमाको आवश्यकतासे अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए। हम भोजनके रूपमें अमुक वस्तुओंके त्यागका उपयोग अपने कपट-जाल, धूर्तता और पापाचरणको छिपानेके लिए नहीं कर सकते। और इस आशंका कि कहीं उनका स्पर्श हमारी आध्यात्मिक उन्नतिमें बाधक न हो, हमें किसी पतित या गन्दे भाई-बहनकी सेवासे हरगिज मुँह न मोड़ना चाहिए।

हिन्दू-मुस्लिम एकता

हिन्दू-मुस्लिम एकताके सम्बन्धमें भी अभी बहुत-कुछ होना बाकी है। इस एकताको अभी लोग सन्देहकी दृष्टिसे देखते हैं। उन्हें डर है कि इससे छोटी जातियोंके स्वतन्त्र अस्तित्व तथा उन्नतिमें बाधा पहुँचेगी। हम सावधान रहें। हमें अपनी पिछली भूलोंको फिर न दोहराना चाहिए। हमें अपने नरमदलीय अथवा निर्दलीय भाइयोंके साथ भाईचारेका बरताव रखना चाहिए। उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि इन लोगोंके साथ रहने में हमारी खैर नहीं है। अपनी सहिष्णुताके द्वारा हमें उनके मनसे अपने सम्बन्धमें उनकी सारी शंकाएँ और विरोधका भाव दूर कर देना चाहिए; हाँ, हमारे आदर्शो से उनका जो विरोध है वह भले रहे।

सविनय अवज्ञा

हमें सारा विश्वास केवल सविनय अवज्ञापर ही केन्द्रित नहीं कर देना चाहिए। उसका उपयोग तो हमें चाकूके समान बहुत ही सोच-समझकर करना चाहिए। जब मनुष्य बराबर बे-रोक काटता ही चला जाता है तो वह जड़-बुनियादको भी काट डालता है और जिस चीजको प्राप्त करने के लिए वह ऊपरके फिजूल अंशको काटना चाहता था वह भी उसके साथ कट जाती है। सविनय अवज्ञाका प्रयोग केवल उसी दशामें अच्छा, आवश्यक और अक्सीर होगा जब हम मनुष्यकी उन्नति के दूसरे तमाम नियमोंपर अटल और दृढ़ रहें। अतएव हमें अवज्ञाकी बनिस्बत उसके 'सविनय' विशेषणपर पूरा-पूरा जोर देना चाहिए। विनय, अनुशासन, विवेक और अहिंसाके बिना अवज्ञा करनेसे सिवा सर्वनाशके और कुछ नहीं हो सकता। प्रेमके साथ की गई अवज्ञा प्राणदायी और जीवनवर्द्धक है। सविनय अवज्ञा तो उन्नतिका बड़ा बढ़िया लक्षण है; वह ऐसा विसंवादी विरोध नहीं जो नाशकारी होता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५-१-१९२२
२२-१०