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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

महिला-परिषद्

मैं महिला-परिषद्का उल्लेख किये बिना नहीं रह सकता, जिसकी कि सभानेत्री अली भाइयोंकी वीर माता बी-अम्मा थीं। वह दृश्य हृदयस्पर्शी था। पूरे विशाल पण्डालमें पन्द्रह हजारसे कम औरतें न थीं। मैं यह नहीं कहता कि वहाँ जो कुछ हो रहा था उसका रहस्य सभीकी समझमें आ गया। लेकिन मैं यह जरूर कहता हूँ कि वे अपने दिलसे इतना जानती थीं कि वहाँ क्या बात हो रही है। वे जानती थीं कि उनकी इस सभाने भारतकी उद्देश्य-पूर्ति में बड़ी सहायता पहुँचाई है और उन्हें मालूम था कि हमें भी अब पुरुषोंके साथ-ही-साथ अपने हिस्सेका काम करना है।

इस तमाम भीड़-भाड़में, जहाँतक मुझे पता है, किसी तरह की कोई दुर्घटना नहीं हुई। पुलिसने किसीके काममें दखल नहीं दिया, किसीसे छेड़-छाड़ नहीं की । यह उसके लिए नेकनामीकी बात है। पुलसे कांग्रेस अधिवेशनकी ओरका सारा प्रबन्ध कांग्रेस तथा खिलाफत के स्वयंसेवकोंके सुपुर्द था।

इस चित्रका कृष्ण पक्ष

यहाँ तक तो मैंने चित्रका उज्ज्वल पक्ष दिखाया। परन्तु अन्य सभी चित्रोंकी तरह इस चित्रका कृष्ण पक्ष भी था। लोगोंमें उत्साह तो खूब प्रबल था; पर प्रेक्षक कभी-कभी नियमोंको भंग कर देते थे। अधीर हो उठनेपर वे एक-दो बार तो मण्डपमें जाने के लिए जबरदस्ती फाटकमें घुस पड़े। उस समय तो कुशल रही; परन्तु उससे बात बढ़कर भयंकर हो सकती थी। हममें इतनी योग्यता अवश्य होनी चाहिए जिससे हम ऐसे कार्योंको पूर्ण शान्तिके साथ निर्विघ्न पूरा कर सकें। और यह उसी दशा में सम्भव है जबकि जन-समूह कुदरती तौरपर और अपने-आप अपने ही भाई-बिरादरोंकी हिदायतों के मुताबिक बरते। आत्मसंयम स्वराज्य अर्थात् स्वशासनकी कुंजी है। प्रतिनिधिभाई भी नियमोंका पालन करने में शिष्टाचारका ध्यान नहीं रखते थे। कुछ लोग तो अपने लिए नियत स्थानको छोड़कर दूसरी जगह बैठ गये। कुछ भाइयोंने तो बिना हिचकिचाहटके यहाँतक कह डाला कि हम तो सविनय अवज्ञाके लिए कमर कस चुके हैं, अतएव जहाँ हमारा जी चाहेगा वहीं बैठेंगे। कांग्रेस कमेटीके कुछ सदस्य भी ऐसे अभद्र दण्डनीय कानून-भंगसे बरी नहीं थे। कुछ प्रतिनिधियोंने अपने स्थानका किराया और भोजनके दाम भी देने नहीं चाहे। और मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि एक गुजराती भाई, यह जानते हुए भी कि प्रेक्षकोंके टिकट दूसरेके काम नहीं आ सकते, जालसाजी करके अपने एक मित्रका टिकट लेकर आते रहे। इस बात से मेरा दुःख और भी बढ़ जाता है कि वे प्रान्तीय कमेटी के एक प्रसिद्ध सदस्य हैं।

अब आगे!

जब मैं तस्वीरके इस बुरे पहलूका ध्यान करता हूँ तो मेरा दिल बैठ जाता है। हमें अपने ध्येयकी प्राप्तिमें क्यों देर हो रही है, यह मैं जानता हूँ। परन्तु जब मैं उसके अच्छे पहलूकी ओर देखता हूँ तो चित्र इतना मनोहर मालूम होता है कि इन छायाओंसे उसकी सुन्दरता कुछ खास कम नहीं हो सकती। पर साथ ही हमें इन