पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१६५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४१
कांग्रेसका अधिवेशन और उसके बाद

सकती जैसी कि उन आन्ध्रकी महिलाओंने केवल अपने हाथोंसे बनाकर दिखाई। जितना बारीक धागा उन आन्ध्र-महिलाओंकी कोमल अँगुलियोंसे निकलता था उतना किसी यन्त्रसे नहीं निकल सकता। तकुआ चक्कर खाता हुआ अपने संगीतका जैसा सुर छेड़ता था वैसा अन्य किसी प्रकारसे नहीं निकल सकता। एक कमरेमें हर तरहकी खादीके नमूने रखे थे। उनसे यह बात जानी जा सकती थी कि इस एक वर्षमें खादीके जीवनमें कितना विकास हुआ है। कविवर रवीन्द्रनाथके शान्तिनिकेतन तथा दूसरी जगहोंसे चित्रकला के कुछ नमूने आये थे और नक्काशीकी कारीगरीके भी कुछ सुन्दर नमूने रखे गये थे। उन्हें देखकर सामान्य दर्शक तथा उस विषय के ज्ञाताको भी कुछ नई बातें मालूम हो सकती थीं। संगीत समारोह भी हुए थे जिनमें भारतके समस्त प्रान्तोंके अच्छे-अच्छे गवैये एकत्र हुए थे। उन्हें देखने के लिए हजारों लोग बेतरह उमड़ते थे। समारोहके अन्तमें अखिल भारतीय संगीत-परिषद्का पहला अधिवेशन हुआ। उसके संयोजक थे पण्डित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर[१]। परिषद्का उद्देश्य था राष्ट्रीय सभा-समितियोंमें संगीतका प्रवेश और प्रचार करना तथा भजन मंडलियोंका संगठन करना।

खादीकी लोकप्रियता

खादीनगर, उसके पासका मुस्लिमनगर और उसके पड़ोसमें ही खिलाफत मण्डप, ये हिन्दू-मुस्लिम एकताके सबसे बड़े उदाहरण थे तथा खादीकी लोकप्रियता के प्रत्यक्ष प्रमाण थे। स्वागत समितिने सिर्फ गुजरातमें ही बनी खादीसे काम लिया है। कुल साढ़े तीन लाख रुपये की खादी मँगाई गई और उसके उपयोगके लिए पचास हजार रुपया खर्च किया गया। प्रतिनिधियों और दर्शकोंके तमाम डेरोंपर तथा एक बड़े भारी रसोई-घर और भण्डारगृहपर खादी-ही-खादी लगी हुई थी। कोई दो हजार हिन्दू-मुसलमान स्वयंसेवकोंने जिनमें कुछ पारसी और ईसाई भी थे, खादीनगर तथा मुस्लिमनगरमें ठहरनेवाले तमाम मेहमानोंके सत्कार और प्रबन्धका भार सँभाला।

शौचादिके लिए विशेष रूपसे प्रबन्ध किया गया था । इसके लिए छोटी-छोटी खाइयाँ खुदवाई गई थीं और हर शौचालय के चारों ओर खादीके पर्दे लगाये गये थे। हर एक सज्जनके टट्टीसे बाहर निकलते ही मैलेपर साफ मिट्टी डाली जाती थी। इससे जब भी कोई टट्टी जाता तो वह उसे साफ ही नजर आती थी। खाइयोंकी सफाईके कामपर दाम देकर मेहतर नहीं रखे गये थे; पर हर जाति और हर मजहबके स्वयंसेवकगण तैनात थे। इस कामके लिए उन्हीं स्वयंसेवकोंकी योजना की गई थी जिन्हें इस आवश्यक कामसे अरुचि नहीं थी। पाठक शायद इस बातको न जानते होंगे कि यह विधि कितनी अच्छी है। इससे सफाई खूब रहती है। इससे मैला साफ करनेवालेको न तो मैलेको छूना पड़ता है और न उसपर पड़ी हुई मिट्टीको ही। उसे बस बेलचे-भर साफ मिट्टी उसपर डाल देनेकी और एहतियातके साथ मैलेको ढक देनेकी जरूरत रहती है। इस जरा-सी और मामूली एहतियातका फल यह हुआ कि आसपासकी जगह बड़ी साफ और सुहावनी बनी रही और मक्खियोंकी भिनभिनाहटसे और उनके दोषसे बची रही। सभी जगहोंपर बिजलीकी रोशनीकी तजबीज की गई थी।

  1. पण्डित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर, शास्त्रीय संगीतके विख्यात गायक। गांधर्व महाविद्यालयके संस्थापक।