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कांग्रेसका अधिवेशन और उसके बाद

हैसियतसे वकालत पहले ही छोड़ दी है। उन्हें अपने ऊपर और देशपर इतना विश्वास तो है ही कि वे यह विश्वास रखें कि जब स्वराज्य मिलेगा और वह निकट भविष्य में मिलनेवाला ही है, तब उनका नाम सूचीमें सम्मानके साथ पुनः शामिल कर लिया जायेगा, भले ही २३ तारीखको उच्च न्यायालय उसे हटाना चाहे तो हटा दे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५-१-१९२२

६२. कांग्रेसका अधिवेशन और उसके बाद
सारांश

कांग्रेस अधिवेशनका सप्ताह बड़े हर्ष और उत्सवका सप्ताह था। किसीको ऐसा नहीं लगता था कि स्वराज्य अभी प्राप्त नहीं हुआ है। प्रत्येक मनुष्य इस बातको जानता मालूम होता था कि हमारा राष्ट्रीय बल लगातार बढ़ रहा है। जिसे देखिए उसी के चेहरेपर विश्वास और आशाके भाव झलकते हुए दिखाई देते थे। स्वागत-समितिने अधिवेशन के लिए एक लाख मनुष्योंके बैठने योग्य मण्डप बनाया था; परन्तु आगत सज्जनोंकी संख्याका अनुमान कमसे कम दो लाखका है। भीड़ इतनी अधिक थी कि 'सीजन' टिकट या प्रवेश टिकट तक देना असम्भव हो गया। और यदि लोगोंको डरानेके लिए कुछ झूठी अफवाहें न उड़ाई गई होतीं तो दर्शकोंकी यह आश्चर्यजनक संख्या और अधिक होती। नेताओं तथा कार्यकर्त्ताओंके कारावास और उनके साहसने लोगोंके हृदयोंमें एक नई आशा और नई उमंग पैदा कर दी है। ऐसा लगता था कि लोगोंको यह मालूम हो गया है कि आजादी प्राप्त करनेकी तथा अपनी आजादीमें रुकावट डालनेवाली बड़ी-बड़ी ताकतके टुकड़े-टुकड़े कर डालनेकी रामबाण दवा बस कष्ट सहन ही है।

कांग्रेस के नये विधानके अनुसार एक सालतक काम हुआ है और मेरी विनम्र सम्मति में विधानने अपनी उपयोगिता पूरी तरह सिद्ध कर दी है। विषय समितिमें चारों ओर गम्भीरता और 'कामसे काम रखने'की प्रवृत्ति दिखाई देती थी। उसमें प्रत्येक बातकी खूब छानबीन की जाती थी। फिर उसके सदस्योंका चुनाव तत्काल ही, जैसा बन पड़ा, वैसा नहीं किया गया था; बल्कि वे अपने मतदाताओं द्वारा बहुत सोच-विचारके उपरान्त निर्वाचित किये गये थे। मतदाता भी ऐसे जो यह जानते थे कि हम क्या कर रहे हैं। खुद कांग्रेसके अधिवेशनका दृश्य भी प्रभावशाली था। देशबन्धु चित्तरंजन दासकी जगह सभापतिके आसनको हकीमजीने[१] सुशोभित किया। उन्होंने अपना काम जिस धीरजसे निबाहा उससे यह सिद्ध हो गया है कि वे एक आदर्श सभापति हैं। प्रतिनिधियोंने मत देने से पहले अपनी शंकाओंके निवारणका आग्रह किया। प्रत्येक बातकी और पूरी कार्रवाईको जाननेका वे बार-बार प्रयत्न करते थे।

  1. हकीम अजमल खाँ।