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टिप्पणियाँ


उपयुक्त टिप्पणियाँ लिखनेके बाद मुझ एक तार मिला। इस तारमें कहा गया है कि श्री देसाईसे दुबारा मिलने दिया गया और वे बिलकुल स्वस्थ हैं और उनके साथ अब अच्छा व्यवहार किया जा रहा है। अधिकारियोंकी खातिर, मुझे इस बातकी खुशी है कि श्री देसाईके साथ किये जा रहे व्यवहारमें सुधार किया गया है। खैर, यह तो ठीक है लेकिन ऊपर जिस अस्वच्छताका वर्णन हुआ है वह तो शुरूसे ही नहीं होनी चाहिए थी। महादेव देसाई-सरीखे किसी एक व्यक्तिके साथ मजबूरन अच्छा व्यवहार किया गया—यह बात खास महत्त्व नहीं रखती। सवाल एकका नहीं बल्कि बहुतसे लोगोंका है। सामान्य कैदियोंकी क्या हालत होगी? क्या उन्हें कोई अधिकार है? सुसंस्कृत लोगोंका कैदमें डाला जाना उस दृष्टिसे एक अनायास प्राप्त सौभाग्य है। जेलमें राजनीतिक कैदियोंकी उपस्थितिका एक आनुषंगिक लाभ यह होगा कि मानव-अधिकारोंका यह सवाल हल हो जायेगा।

'इंडिपेंडेंट' का नया रूप

श्री महादेव देसाईने दो हजार रुपयेकी जमानत जब्त हो जानेपर 'इंडिपेंडेंट' का जो हस्तलिखित संस्करण निकाला था वह कठिनाइयोंके बावजूद अब भी निकल रहा है। वह अपने नये रूपमें नियमित रूप से प्रकाशित हो रहा। अगर वर्तमान सम्पादक गिरफ्तार कर लिया गया तो उसके बाद क्रमशः यह पद कौन-कौन लोग सँभालेंगे, इसकी व्यवस्था कर ली गई है। पत्रके मुखपृष्ठपर उन सम्पादकों और सहायक सम्पादकोंके नाम हैं जो कि इस थोड़ी-सी अवधि में गिरफ्तार कर लिये गये हैं। वे हैं :—रंगा अय्यर,[१] जॉर्ज जोजेफ, कबाड़ी और महादेव देसाई। मेरा खयाल है कि लाहौर के 'जमींदार' पत्रको छोड़कर कोई ऐसा दूसरा पत्र नहीं है, जिसका ऐसा गौरवपूर्ण रेकार्ड हो। मैं एक दूसरे कालममें पिछले सात अंकोंसे कुछ चुनी हुई सामग्री प्रकाशित कर रहा हूँ। पहला अंक तो मैं पूरा प्रकाशित कर ही चुका हूँ। पत्रकी यह विशेषता पाठकोंके ध्यानमें अवश्य आयेगी कि समाचार कितनी सावधानीसे संकलित किये गये हैं, कैसे एक-दूसरेसे उनका ताल-मेल बैठाया गया है और उन्हें संक्षिप्त रूपमें पेश किया गया है। पाठक यह भी देखेंगे कि सम्पादकीयमें कैसे ठोस विचार हैं। मैं पूरी आशा करता हूँ कि इलाहाबादकी जनता इस प्रयोगके प्रति सहानुभूति जतायेगी और उसके युवा सम्पादक द्वारा की गई अपीलका समर्थन करेगी। यह एक साहसपूर्ण प्रयोग है और उसमें महत्त्वपूर्ण सम्भावनाएँ निहित हैं। मुमकिन है कि सरकार पत्रके खिलाफ अपनी कार्रवाई की कोई हद ही न बाँधे और प्रत्येक नये सम्पादकको गिरफ्तार करती चली जाये। इस नये प्रयोगका उद्देश्य यह दिखाना है कि जब सजा भुगतने के लिए काफी आदमी मौजूद हों तो कोई भी सरकार जनताकी मर्जीके खिलाफ जबरदस्ती अपनी इच्छा नहीं लाद सकती। अपनेको स्वतन्त्र अनुभव करने और स्वतन्त्र होनेसे पहले यह जरूरी है कि हम सभी सरकारी रियायतोंको ठुकरा सकें। हमें यह मानना पड़ेगा कि हमारे असहयोग आन्दोलन के बावजूद बहुत सी ऐसी चीजें

  1. सी॰ एस॰ रंगा अय्यर।