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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

भी स्थान है। पवित्र भजनोंके रूपमें उनके पास एक ऐसी आत्मशक्ति भी है जिसपर यातनाओंका असर नहीं होता। वे भजन गाकर अपने इन सारे कष्टोंकी पीड़ाको दूर कर सकेंगे। मेरा पूरा विश्वास है कि मीराबाईपर उनके पति द्वारा दी गई यातनाओंका कोई असर नहीं हुआ था। ईश्वरके प्रति प्रेम और उसके अमूल्य नामका निरन्तर स्मरण उन्हें नित्य प्रसन्न बनाये रखता था। जब मैं उन राजपूत वीरांगनाओंकी याद करता हूँ जो ईश्वरका नाम लेकर जलती हुई चितामें कूद जाती थीं तब मेरे मनमें उनका जो चित्र उभरता है मैं उसमें उनके चेहरेपर आनन्दका ही भाव देखता हूँ। लेटीमरने[१] जब शानके साथ अपना हाथ फैलाकर आगमें डाल दिया तो उन्हें तनिक भी कष्ट नहीं हुआ। उन्हें अगर किसी चीजने बचाया तो वह थी ईश्वरमें उनका विश्वास और उनकी सत्यनिष्ठा। चमत्कारोंका युग आज भी गुजरा नहीं है। यदि हम ईश्वरकी सत्ता और उसकी रक्षा करनेकी क्षमतामें थोड़ा भी विश्वास करें तो हमें ऐसा कवच मिल जाता है जिसके बलपर हम उन सब पीड़ाओंको सह सकते हैं जिन्हें असह्य कहा जाता है। किसी भी सत्याग्रहीको जिसे अपने उद्देश्यमें विश्वास है, इस सत्यमें तनिक भी सन्देह नहीं करना चाहिए कि संकटके समय ईश्वर उसकी रक्षा करेगा।

मुझे पूरा विश्वास है महादेव देसाई अपने विनम्र किन्तु गरिमापूर्ण व्यक्तित्वसे दुर्व्यवहार करनेवाले पाषाण हृदय व्यक्तियोंका भी दिल पिघला सकेंगे।

लेकिन हम सरकारके दुर्व्यवहारके उदाहरणोंकी अपनी चर्चापर वापिस आयें : लखनऊका उदाहरण लीजिये। वहाँ सब ठीक चल रहा था। पण्डित नेहरू और उनके साथियोंको आवश्यक सुविधाएँ दी गई थीं। मैं तो यह सोचने लगा था कि यद्यपि संयुक्त प्रान्तकी सरकार अपनी आज्ञाका उल्लंघन करनेवालों को बराबर जेलमें डाल रही है फिर भी वह राजनीतिक बन्दियोंके साथ शालीनता और नम्रताका व्यवहार कर रही है। लेकिन अब ऐसा मालूम होता है कि लखनऊमें भी कुछ परिवर्तन आ गया है। मुझे अभी-अभी खबर मिली कि शेख खलीकुज्जमाँ और उनके दस साथियोंको जिला जेलसे केन्द्रीय जेलमें भेज दिया गया है और उन्हें जो सुविधाएँ दी गई थीं उनसे उन्हें वंचित किया जायेगा और शायद उनसे किसीको मिलनेकी इजाजत भी नहीं मिलेगी। पण्डित नेहरू और बाकी कैदियोंने इस प्रकारके भेदभावके विरुद्ध एक कड़ा विरोध-पत्र भेजा है और इस बातकी माँग की है कि उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए जैसा कि दूसरे राजनीतिक कैदियोंके साथ किया जाता है। हर भारतवासीके लिए यह गर्व की बात होनी चाहिए कि भारतके कुछ बेहतरीन आदमी आज अपना सारा बड़प्पन भूलकर आम आदमीके साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर काम कर रहे हैं और अपने लिए किन्हीं विशेष अधिकारोंकी माँग नहीं कर रहे हैं।[२]

  1. ह्यू लेटीमर (१४८५-१५५५); अंग्रेज समाज-सुधारक जिनपर धर्म-विरोधी होनेका आरोप लगाकर जीवित जला दिया गया था।
  2. इस अनुच्छेदके अन्तमें लेखन-तिथि, १ जनवरीका उल्लेख है।