पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१५८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

वह इनकार करेगा। वह खुशी-खुशी नंगे बदन रहेगा और ठंडमें ठिठुर-ठिठुरकर मौतका आलिंगन करेगा। लेकिन उसे कीटाणुवाले गन्दे कम्बलों और कमीजोंको लेनेसे दृढ़तापूर्वक इनकार करना होगा। भले ही वह बगैर खानेके रहे लेकिन उसे कंकरीले आटे की रोटियाँ और दाल खानेसे इनकार करना चाहिए। भले ही वह बगैर स्नान किये रहे लेकिन उसे गन्दे पानीमें नहाने से इनकार करना चाहिए। जहाँ झुकना अमानवीय हो वहाँ सत्याग्रह कर्त्तव्य हो जाता है।

सत्याग्रहियोंको स्वेच्छापूर्वक कष्ट सहनेका जो अवसर मिला है, उसे उन्हें अपना सौभाग्य ही समझना चाहिए। यह सबसे श्रेष्ठ सेवा है। वे लोग दरअसल जेलको पवित्र कर रहे हैं। सामान्य अपराधी भी मानवीय व्यवहारके अधिकारी हैं। भले ही सरकार बहुत सादा खाना और कपड़ा दे लेकिन दोनों ही चीजें होनी चाहिए स्वच्छ और पर्याप्त।

मेरे लिए इस प्रकारके अमानवीय व्यवहारके विवरण प्रकाशित करना कोई खुशीकी बात नहीं है चाहे ऐसा व्यवहार कहीं भी और किसी ने भी किया हो। मैं यह विश्वास नहीं करना चाहता कि मनुष्य ऐसा पाशविक आचरण भी कर सकते हैं जैसा कि उन बहुत-सी घटनाओंसे सिद्ध होता है जो कि उनके बारेमें बताई जाती हैं। मेरी यह ख्वाहिश है कि यह लड़ाई खिलाड़ियोंकी भावनाके साथ लड़ी जाये। जब मैं यह देखता हूँ कि औचित्यकी मर्यादाओंका पालन नहीं हो रहा है तो मुझे यह बात बहुत कचोटती है।

लेकिन अगर दूसरे लोग यानी शासक वर्ग गन्दा खेल खेलता है, तो वैसा ही सही। सत्याग्रहियों के सामने और कोई चारा नहीं है उन्हें तो स्थितियोंका मुकाबला करना है और सामने आनेवाली कठिनाइयोंके बीचसे होकर गुजरना है। जापानियोंकी वीरताकी एक कहानी है कि जब उन्होंने एक खाईको पार करनेमें अपनेको असमर्थ पाया तो उन्होंने उस खाईको अपनी लाशोंसे पाट दिया। हमारा प्रण मारना नहीं है वल्कि केवल मारे जाना है, लेकिन क्या इसलिए हमें उन लोगोंके मुकाबले कम त्याग करना चाहिए? हमारा प्रण तो हमसे जापानी सिपाहियोंसे भी ज्यादा वीरताकी माँग करता है क्योंकि हमें तो लड़ाईके ढोल बाजोंके बिना ही आगके बीचसे होकर गुजरना है।

पत्र-लेखकने जो अभियोग लगाया है, वह गम्भीर है। मैं इसके समर्थनमें और प्रमाण देना चाहूँगा। मुझे 'इंडिपेंडेंट' पत्रके सम्पादक महादेव देसाईके साथ किये जा रहे व्यवहारका विस्तृत विवरण प्राप्त हुआ है; जिसे मैं उद्धृत करता हूँ। 'यंग इंडिया' के पाठक जानते हैं कि इस पत्रसे उनका क्या सम्बन्ध है।[१] वे सबसे ज्यादा संजीदा कार्यकर्त्ताओंमें हैं और बहुत संवेदनशील हैं। श्री देसाईके एक मित्र श्रीमती देसाईके साथ उनसे मिलने गये। लेखक इस सम्बन्धमें कहते हैं :

हमें जबरदस्त दमन सहना होगा; हम उसके लिए तैयार हो रहे हैं। मैंने आपको महादेवभाईके कारावासके बारेमें तार भेजा है। उन्हें अदालतमें
  1. महादेव देसाई यंग इंडियाके प्रकाशक थे।