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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

तैयार रहना चाहिए। हमें तब भी विचलित नहीं होना चाहिए। मौजूदा लड़ाई पंजाब और खिलाफत सम्बन्धी अन्यायोंके परिशोधनके लिए उतनी नहीं है, और स्वराज्य के लिए तो और भी नहीं। हम अभी वाणीकी स्वतन्त्रता और संगठन आदि बनानेकी आजादी जैसे बुनियादी अधिकारोंके लिए लड़ रहे हैं, और इस सवालपर हम नरम दलवालों और अन्य लोगोंसे भी सहयोगकी अपेक्षा करते हैं। बीचमें जो यह छोटी-सी भिड़न्त हो गई है, वह खतम होनेके बाद हमारा रास्ता साफ हो जायेगा।

महात्माजीने यह भी कहा कि स्वराज्यको किसी भी योजनामें सेना और पुलिसपर जनताके नियन्त्रणकी बात अवश्य होनी चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ५-१-१९२२

६१. टिप्पणियाँ
जेल जीवनकी झाँकी

भूख या फिर ऐसा खाना जो कुत्तोंके खाने लायक होता है, ओढ़नेको कुछ नहीं और ऐसा तो बिलकुल ही नहीं जो दिल्लीको कड़ाके की सर्वोसे बचा सके; कपड़ोंके नामपर जघन्य अपराधोंके अपराधी मामूली कैदियोंकी फटी-पुरानी उतारन; उसमें भी जुओं और पिस्सुओंकी भरभार और खूनके दाग; और सबसे भयंकर बात तो यह है कि अगर कभी एकाध असहयोगी सरकारी प्रलोभनों में फँसकर नैतिक दृष्टिसे कुछ कमजोर हो जाता है तो उसके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है या उसे छोड़ दिया जाता है और इस बातकी ओर हमेशा इशारा किया जाता है तथा जोर डालकर ऐसी परिस्थिति लानेकी कोशिश भी की जाती है।

जब दिल्ली के लाला शंकरलाल दिल्ली जेलसे मियाँवाली जेल ले जाये जा रहे थे तब उन्होंने उक्त शब्दों में अपने जेल जीवनका विवरण दिया। मुझे जिस मित्रने यह विवरण भेजा है, वे लिखते हैं:

हमने मोपलोंकी बन्द मौतगाड़ीका[१] नाम सुना है लेकिन यह दिल्ली जेल, जहाँ हमारे बेहतरीन और श्रेष्ठ असहयोगी कार्यकर्त्ता से गये हैं, खुली होते हुए भी एक ऐसी जगह बना दी गई है जहाँ मौत और शैतानका मिलाजुला साम्राज्य है। ये पंक्तियाँ लिखते समय भावावेशके कारण मेरे विचारोंकी गति अवरुद्ध हो रही है। शायद इस कारण हमारे इस सुन्दर और प्रिय देशमें
  1. रेलगाड़ीके एक बन्द डिब्बेमें मोपला कैदियोंको भरकर ले जाया जा रहा था; दम घुट जानेसे कुछ कैदियोंकी मृत्यु हो गई थी।