५९. पत्र : देवदास गांधीको
बुधवार [४ जनवरी, १९२२][१]
तुम्हारा समाचारपत्र[२] मुझे मिलता ही रहता है, किन्तु तुम्हारा कोई पत्र नहीं आया है। इस समस्त परिश्रम के बीच तुम अपनी लिखावट सुधारनेकी बात मत भूलना। इस बारके 'यंग इंडिया'में तुम्हें 'इंडिपेंडेंट' की बहुत-सी सामग्री मिलेगी। हमने तुम्हारे सब अंकोंका सार देनेका निश्चय किया है, इसलिए वह सप्ताह में एक बार तो तुम्हें आसानीसे मिल जायेगा। तुमने 'गूंगा मौन' (म्यूट साइलेंस) शब्दों का प्रयोग किया है। यह 'गूंगा मौन' क्या होता है?
अभी तुम्हारे अक्षर इतने स्पष्ट नहीं होते कि वे पढ़े जा सकें। तुम टाइप कराना बिलकुल छोड़ दो, यह बात मुझे अधिक ठीक जान पड़ती है। जिस व्यक्ति से समाचारपत्रकी सामग्री लिखवाते हो उसकी लिखावट तो अच्छी है।
तुम्हारा तीसरा पृष्ठ अच्छा नहीं है। टाइप करनेवाले ने बहुत-सी जगह खाली छोड़ दी है। बंगालके गवर्नर के सम्बन्धमें खबर कौन देगा? मालवीयजी कानून भंग करते हैं, यह लिखनेवाले को सूलीपर चढ़ा देना चाहिए। वे तो मद्रास गये भी नहीं।
दूसरे पृष्ठपर 'गोलमेज सम्मेलन' शीर्षक दो बार आया है।
आज नेहरू परिवार के लोग लखनऊ के लिए रवाना हो गये। वे सब तीसरे दर्जे में गये हैं; यह टिप्पणी तुम दे सकते हो। उर्मिलादेवी भी उसी वर्गमें यात्रा कर रही हैं।
१४ तारीखको मैं बम्बई में होऊँगा। वहाँ उसी दिन नरमदलीय सम्मेलन है। मुझे १५ तारीखको भी वहाँ रहना पड़ेगा। सुन्दरम् फिलहाल यहीं रहेगा।
तुम्हें अपने पत्रकी प्रत्येक पंक्ति पढ़ लेनी चाहिए। सामग्री अभी और कम कर सकते हो, लेकिन जितनी दो उतनी ठोस हो; और उसे सुन्दर भी बनाओ।
बापूके आशीर्वाद
स्वदेशीकी खबर तो देनी ही चाहिए। जिन्हें अवकाश हो उन्हें स्वदेशीका प्रचार करना चाहिए। उन्हें सूत कातना, रुई पींजना, कपड़ा बुनना और बेचना चाहिए।