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पत्र:देवदास गांधीको


यह न केवल धूर्तताकी बात है, वरन् इस पुनीत कार्यके लिए हानिकर भी है। जो लोग इसमें आयें उन सभीको खादी अवश्य पहननी चाहिए। जेल जाना गौरवकी बात है। कोई भी जेल जाकर हमपर एहसान नहीं करता। वह स्वयं ही कृतार्थ होता है।

एक प्रतिनिधिने कहा कि इस स्थितिमें तो काफी स्वयंसेवक नहीं होंगे क्योंकि बंगालमें हाथकी कती और बुनी शुद्ध खादी पर्याप्त मात्रामें नहीं मिल पाती।

महात्माजी : तब यदि बंगालमें काफी स्वयंसेवक नहीं हैं तो मैं समझता हूँ कि आप बंगालकी खाड़ीमें बह् जायें और अधिक उपयोगी स्त्री-पुरुषोंके लिए जगह खाली कर दें।

मिदनापुरके एक प्रतिनिधिके यह पूछनेपर कि यदि राष्ट्रीय स्कूलोंके अध्यापक जेल जायेंगे तो उनका काम कौन करेगा, महात्माजीने कहा कि मिदनापुरकी महिलाएँ जो कुशल सूत कातनेवाली हैं, उनका काम कर सकती हैं।

प्रश्न : जब जनतासे मारपीट की जाये तो स्वयंसेवकोंका क्या कर्त्तव्य है?

महात्माजी : उन्हें बीचमें जाकर उसे रोकना चाहिए और चोटें स्वयं झेलनी चाहिए।

बड़ाबाजारका एक प्रतिनिधि : हमें उन व्यापारियोंसे कैसा व्यवहार करना चाहिए, जिन्होंने हस्ताक्षर किये थे और वादा किया था कि वे फरवरी और मार्च तक विदेशी कपड़ा नहीं मँगायेंगे।

महात्माजी : हमें उनसे फिरसे हस्ताक्षर करनेके लिए कहना है।

प्रतिनिधियोंके साथ दो घंटे बिताकर महात्माजी चले गये।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १४-१-१९२२

५३. पत्र : देवदास गांधीको

शुक्रवार [३० दिसम्बर, १९२१][१]

चि॰ देवदास,

श्रीमती जोजेफका पत्र इसके साथ है। मैंने उन्हें लिखा है कि तुम उन्हें वहाँसे पैसा भेजोगे। 'इंडिपेंडेंट' के संचालकोंसे मिलकर आवश्यक प्रबन्ध कर लेना या जैसा तुम्हें सूझे, वैसा करना। ध्यान रखना कि तुम्हारे जेल जानेके बाद भी उन्हें कोई तकलीफ न हो।

गोविन्दके[२] चले जानेसे मुझे तो बड़ा सन्तोष हुआ है। उन्होंने तुम्हें अभीतक गिरफ्तार नहीं किया है, सो तो जान-बूझकर ही नहीं किया। इसकी चिन्ता नहीं

  1. इस पत्रके आखिरी हिस्सेमें पॉल रिचर्डका उल्लेख है और वे दिसम्बरके अन्तिम सप्ताह में अहमदाबादमें थे। श्री रिचर्ड शनिवार, ३१ दिसम्बर, १९२१ को गांधीजीके साथ गुजरात महाविद्यालय देखने गये थे
  2. पं॰ मदनमोहन मालवीयके पुत्र। उन्हें धरना देनेके आरोप में २० दिसम्बर, १९२१ को गिरफ्तार किया गया था किन्तु बादमें छोड़ दिया गया था।