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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

सकते हैं और भारत में ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं कि हम अपनी भयंकर दरिद्रतासे छुटकारा पा सकें।

श्रीयुत गुणदाचन्द्र सेन : कांग्रेसके प्रस्ताव में अन्य सभी गतिविधियोंको बन्द करनेकी बात कही गई है—तब क्या हम अपने स्वदेशीके कार्यको, राष्ट्रीय स्कूलों आदिके कार्यको जारी न रखें?

महात्माजी : जिस हृदतक जरूरी हो उस हदतक हम नये केन्द्र न खोलें जिनके लिए बहुतसे स्वयंसेवकोंकी सेवाओंकी जरूरत होती है। हम उनमें इतने स्वयंसेवक नहीं लगा सकते, क्योंकि हम चाहते हैं कि सभी कार्यकर्त्ता जेल जानेके लिए अपने नाम दें और यदि सरकार उन्हें ले तो हमें हर उपलब्ध कार्यकर्त्ताको उसे दे देना चाहिए । इसलिए मैंने यहाँ 'जिस हदतक जरूरी हो उस हदतक' इन शब्दोंका प्रयोग किया है। यदि हम यह देखें कि जो लोग स्वदेशी के कार्य में लगे हैं उनकी सूची समाप्त हो गई है तो हमें राष्ट्रीय स्कूलोंके कार्यकर्त्ताओं में से—जो काफी बड़ी संख्या में हैं लोग लेने होंगे। उन कार्यकर्त्ताओंको मुक्त कर दिया जाना चाहिए। जब अन्य सभी राष्ट्रीय कार्य बन्द हो जायेंगे; तो इसका अर्थ यह होगा कि उनके कर्मचारी उनमें से निकल आये हैं।

श्रीयुत सुरेशचन्द्र मजुमदार : आपने सार्वजनिक सभाओंके बारेमें कहा है। कृपया हमें निर्देश दें कि क्या हमें स्वयंसेवकोंको जेल जानेके उद्देश्यसे ही गिरफ्तार होनेके लिए सड़कोंपर भेजना है जैसा कि हम अबतक करते रहे हैं।

महात्माजी : जबतक सरकार उन्हें गिरफ्तार करती रहे तबतक आप ऐसा कर सकते हैं; परन्तु वह उनको गिरफ्तार न करे तो मुझे इसकी चिन्ता नहीं होगी। परन्तु जबतक वह उन्हें गिरफ्तार करती रहती है तबतक उनके सम्मुख कोई दूसरा काम नहीं है; तबतक उन्हें बस बाहर जाना है और गिरफ्तार होना है।

एक प्रतिनिधि : क्या हम चौकीदारी कर देना बन्द कर सकते हैं?

महात्माजी : अभी नहीं। वह तो आक्रमणात्मक सविनय अवज्ञा होगी।

अछूतोंसे क्या तात्पर्य है यह पूछे जानेपर महात्माजीने कहा:

अछूत वे सब हैं जिनका स्पर्श हम अभिमानवश अपनेको दूषित करनेवाला समझते हैं। इसलिए हमें उनको न केवल छूना ही चाहिए बल्कि उनकी सेवा करनी चाहिए। उनके लिए भोजन सुलभ करने अर्थात् यदि वे भूखे रह रहे हैं तो उनकी जीविकाका साधन जुटानेके बाद ही हमें भोजन करना चाहिए। यदि वे प्यासे हैं तो उन्हें पीनेके लिए पानी देनेके बाद ही हमें पानी पीना चाहिए। यदि कोई अछूत बुखारसे परेशान है तो मैं उनकी सेवा करूँगा या उसे साँपने काट लिया है तो मैं उसके घावमें से विषको उसी तरह चूसूंगा जैसे कि यदि मेरे बच्चेको साँप काटे तो मैं उसके घावसे विषको चूसूँगा। साथ-साथ खाने-पीने या विवाह-सम्बन्ध करनेका कोई प्रश्न नहीं। इसका अर्थ यह है कि ये निषिद्ध नहीं हैं; परन्तु इनका आग्रह नहीं है।

यह पूछे जानेपर कि क्या कोई मनुष्य विदेशी कपड़े पहने हुए स्वयंसेवक बन सकता है और सीधा जेल जा सकता है, महात्माजीने कहा: