पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१४६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

हमने निश्चय ही अपनी अहिंसाकी प्रतिज्ञाका पालन अक्षरशः और भावनाके अनुसार नहीं किया है। इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि आप वास्तविक रूपमें इन बातोंपर विचार करें और इनको याद रखें। मैं नहीं समझता कि मुझे इससे अधिक कुछ कहना है।

यह पूछे जानेपर कि एक वकालत करनेवाला वकील प्रस्तावके अनुसार किस तरह देशकी सेवा कर सकता है, महात्माजीने कहा:

वकालत करनेवाला वकील निश्चय ही खादी पहन सकता है, किन्तु वह स्वयंसेवक नहीं बन सकता।

प्रश्न : जैसे कोई वकील, मात्र जरूरतके कारण वकालत करते रहनेको बाध्य है—वह स्वयंसेवक नहीं बन सकता—उसे एक बड़े परिवारका पालन-पोषण करना होता है, वह जेल जानेकी जोखिम नहीं उठा सकता।

महात्माजी : मैं ऐसे वकीलोंको जानता हूँ और ऐसे लोगोंको आज अवश्य ही जेलोंसे बाहर रहना चाहिए, क्योंकि हमारे लिए हजारों लोगोंके पालन-पोषणके साधन जुटाना सम्भव नहीं है और मौजूदा प्रस्ताव इस उद्देश्यको ध्यानमें रखकर नहीं बनाया गया है कि स्वयंसेवक अधिकसे-अधिक संख्यामें भरती हों, चाहे वे अयोग्य ही क्यों न हों, वरन् इस उद्देश्यसे बनाया गया है कि योग्यताके साथ-साथ उनकी संख्या भी अधिक से अधिक हो। दूसरे शब्दोंमें हमें संख्या बढ़ाने के लिए अयोग्य लोगोंको भरती नहीं करना चाहिए। यदि हम संख्या बढ़ाने के प्रयत्नमें स्वयंसेवकोंकी योग्यताका खयाल छोड़ देंगे तो हमें सचमुच स्वराज्य देरसे मिलेगा और मैं भविष्यवाणी कर सकता हूँ कि अन्तमें हम लड़ाईमें हार जायेंगे। मैं आपको बताऊँ कि मैं अहमदाबादके कारखानोंके सभी मजदूरोंसे जिनकी संख्या आज पचास हजार है, प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर करा सकता हूँ; परन्तु मैं नहीं चाहता कि उनमें से एक भी मजदूर उस प्रतिज्ञाको समझे बिना उसपर हस्ताक्षर करे। मैं केवल उन्हींको लेना चाहता हूँ जो वर्षोंसे संघर्षमें रहे हैं और जो उस प्रतिज्ञाका मूल्य समझते हों, जिसे वे लेते हैं। मैं इस तरहके कमसे-कम लोगोंसे स्वराज्य ले सकता हूँ। मैं ऐसे एक करोड़ स्वयंसेवक भी नहीं चाहता कि जो यह न जानते हों कि अहिंसा क्या है और जो हिंसा करनेमें अशक्त होनेके कारण कांग्रेस के कार्यक्रमका अनुसरण करें या करनेका दिखावा करें। मैं इसकी अपेक्षा यह अधिक चाहता हूँ कि वे सहयोगी बन जायें, खुल्लमखुल्ला सरकारके पक्षमें चले जायें और जो कुछ करना चाहें सो करें।

प्रश्न : इस दशामें आदमियोंकी कमीसे कुछ स्थानोंमें काम रुक जायेगा।

महात्माजी : यदि आपके आसपास भी बहुत-सी संस्थाएँ और ऐसे बहुत-से लोग हों जो आपका काम करें किन्तु जेल न जाना चाहें तो इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। आप उनसे निश्चय ही अछूतोंसे सम्बन्धित अपने काममें या नशाबन्दीके काममें, या स्वदेशीके प्रचारके काममें मदद लें, किन्तु वे स्वयंसेवक दलके सदस्य नहीं बन सकते।[१]

  1. गांधीजीने बादमें अपने इस कथनका खण्डन किया था; देखिए "वकालत करनेवाले वकील और स्वयंसेवकों का कार्य", २-२-१९२२।