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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

न करें। कैदियोंके साथ क्या हो रहा है, आप इसकी चिन्ता न करें। स्थितिका सामना करनेके लिए हमारे पास और उपाय हैं। स्वभावतः कैदियोंको रिहा करानेका एक तरीका यह है कि हम जेल जायें, परन्तु हमारा उद्देश्य कैदियोंको रिहा कराना नहीं है, बल्कि हमारा उद्देश्य है स्वराज्य प्राप्त करना और जेलकी चाबी अपने हाथमें लेना। यह है हमारा उद्देश्य। इसलिए यदि आप यह उद्देश्य उस पूरे राष्ट्रीय कार्यको जिसे आप करते रहे हैं, मात्र ईमानदारीकी भावनासे करते हुए पूरा कर सकते हैं तो मैं आपसे कहता हूँ कि स्वार्थकी दृष्टिसे जेलमें रहना बाहर रहनेसे अधिक सुखकर है। मेरा खयाल है कि आप सभी सच्चे और ईमानदार आदमी हैं और मुझे इसका पूरा विश्वास है । यदि ऐसा नहीं है तो आप सच्चे और ईमानदार बनें। तब आप भरोसा रख सकते हैं कि स्वराज्यके लिए एक भी मनुष्यके जेल जाये बिना हम स्वराज्य पा लेंगे।

और इसलिए आपकी शर्तें अधिक कठिन हैं। आपको आदमियों और औरतोंको स्वयंसेवक बनाना है; हम सबको उन सात या आठ प्रतिज्ञाओंका पालन करना है और उनकी पूर्ति करना हो स्वतः सच्चा पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करना है। यदि सभी भारतीय उन प्रतिज्ञाओंपर हस्ताक्षर कर दें और उनका अक्षरशः और उसी भावनासे जिसको लेकर वे लिखी गई हैं, पालन करें तो काम पूरा हो जायेगा। आपको फिर कुछ और करनेकी कतई जरूरत नहीं है।

आपने बंगालमें बहुत हदतक अहिंसाका पालन किया है, किन्तु इसके बावजूद आप मनसे अहिंसक हैं, इसमें मुझे आज भी सन्देह है। और फिर भी मैं चाहता हूँ कि श्री दासने जो कहा है आप उसे याद रखें। उन्होंने आपसे अपने साथ जेल जानेके लिए नहीं कहा है, किन्तु उन्होंने आपसे मनसा, वाचा और कर्मणा अहिंसक रहनेका अनुरोध किया है। हममें से कितने लोग मन, वचन और कर्मसे अहिंसक हैं। वे आज हमसे जेल जानेकी आशा करते हैं—वे ऐसी आशा करते हैं, भले ही ऐसा कहें या न कहें—और इसमें कोई शक नहीं कि वे हम सभीसे जेल जानेकी आशा करते हैं, किन्तु इसकी शर्त यह है कि पहले हम मन, वचन और कर्मसे अहिंसक बन चुके हों। हमारे लिए यह सबसे पहला कर्त्तव्य-कर्म है।

आप आक्रमणात्मक कदम न उठायें बल्कि प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर करके, उसमें लिखी बातोंको समझकर और उसका महत्त्व जानकर रक्षात्मक काम करें। या फिर प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर ही न करें। यदि आपने इस प्रतिज्ञापर उसका पूरा महत्त्व जाने बिना हस्ताक्षर कर दिये हैं, तो आप अपना नाम वापस ले लें। यदि इस प्रतिज्ञामें विश्वास करने में आपको कोई झिझक है तो मैं आपसे किसी भी अवस्थामें सामूहिक सविनय अवज्ञामें भाग लेनेकी आशा नहीं करता। आपको मेरा इन्तजार करना है। सविनय अवज्ञाकी कल्पना पूर्णतः मेरी है, और मैं आपसे कहता हूँ कि वह कहीं अन्यत्रसे नहीं ली गई है—यह सविनय अवज्ञाकी पूरी कल्पना आपके सामने प्रस्तुत कर दी गई है। ये शब्द मेरे नहीं हैं। मेरी अत्यन्त तीव्र इच्छा है कि यह प्रयोग जो समस्त संसारके लिए महत्त्वपूर्ण है, अनुचित और अवैज्ञानिक ढंगसे न किया जाये ताकि वह असफल न हो। मैं चाहता हूँ कि हम इसे असफल न होने दें; सम्भव है मैं खुद असफल हो जाऊँ, लेकिन वह अलग बात है। किन्तु यदि आप कोई भयंकर भूल कर