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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

खाते हैं और बाहरी तौरपर दोनोंको एक ही तरह जेलकी मर्यादाका पालन करना पड़ता है। परन्तु जहाँ ये दूसरे, बुरे कामोंके लिए जेल जानेवाले लोग, जेलकी मर्यादाका पालन अत्यन्त अनिच्छापूर्वक करते हैं और उसे लुके-छिपे अथवा हो सके तो खुलेआम भंग कर देते हैं; वहाँ अच्छे कामोंके लिए जेल जानेवाले लोग, खुशी-खुशी और अपनी पूरी योग्यताके साथ जेलकी मर्यादाका पालन करते हैं और अपने जेलसे बाहर रहनेकी अवस्थाकी अपेक्षा जेलके अन्दर अपनेको अधिक सुयोग्य और देशकी सेवाके अधिक योग्य सिद्ध करते हैं। हम देख ही रहे हैं कि इनमें जो बड़े-बड़े प्रसिद्ध कैदी हैं, उनके जेलमें रहने से उनके द्वारा देशकी जितनी सेवा हुई है उतनी उनके बाहर रहने से नहीं। जितनी कड़ाईके साथ जेलकी मर्यादाका पालन किया जायेगा उसी परिणाममें उनकी सेवाकी मात्रा बढ़ती जायेगी।

हमें यह याद रखना चाहिए कि हम जेलोंको तोड़ देना नहीं चाहते हैं। मैं तो समझता हूँ कि शायद स्वराज्यमें भी हमें जेलोंको कायम रखना होगा। यदि हम पक्के अपराधियों के दिमाग में यह बात भर देंगे कि स्वराज्यकी स्थापनाके बाद वे रिहा कर दिये जायेंगे या उनके साथ बेहतर बरताव होगा तो हमें बड़ी कठिनाईका सामना करना पड़ेगा। मैं स्वराज्यमें जेलोंको कैदियोंके शिक्षालयोंमें बदल देना चाहता हूँ लेकिन अनुशासनका पालन तो उनमें भी कराना ही पड़ेगा। अतएव यदि हम अनुशासनभंगकी प्रवृत्तिको उत्तेजित करें तो उससे वास्तवमें स्वराज्यकी प्रगति रुकेगी ही। यह स्वराज्यका तेज चालवाला कार्यक्रम तैयार ही इस विश्वासके आधारपर किया गया है। कि हम सुसंस्कृत लोग हैं और इसलिए हम थोड़े ही समयमें अपने अन्दर ऊँचे दरजे के अनुशासनका विकास कर सकते हैं।

सच बात तो यह है कि एक ओर जहाँ सविनय अवज्ञा, उस राज्यके जिसे हम नष्ट कर देना चाहते हैं, अन्यायमूलक तथा अनीतिमूलक कानूनोंका अनादर करनेका अधिकार देती है, वहाँ दूसरी ओर वह यह अपेक्षा रखती है कि उस कानूनके अनादरकी सजा नम्रता और राजी-रजामन्दीके साथ कुबूल करो। जेलके कानून-कायदोंका प्रसन्न-चित्तसे पालन करो और उससे होनेवाले दुःखों और कष्टोंको सहन करो।

इसलिए इससे यह बात बिलकुल साफ तौरपर जाहिर हो जाती है कि जेलमें जाते ही सत्याग्रहीका प्रतिरोध बन्द हो जाता है और आज्ञापालन फिरसे शुरू हो जाता है। जेलके अन्दर रहते हुए वह किसी तरहकी विशेष सुविधाका दावा नहीं कर सकता—इस बिनापर कि कानूनका अनादर विनयपूर्वक किया है। जेलके अन्दर रहते हुए वह अपने अनुकरणीय आचरणके द्वारा अपने आसपासके मुजरिमोंका भी सुधार करता है, जेलर तथा दूसरे अधिकारियोंके हृदयको कोमल बनाता है। ऐसा नम्रतापूर्ण व्यवहार, जिसका उद्गम अपने बल और ज्ञानसे हुआ हो, अन्तको जालिमके जुल्मको मिटा देता है। इसी बिनापर तो मैं यह दावा करता हूँ कि स्वेच्छापूर्वक कष्टसहन बुराइयों और अन्यायोंको दूर करनेकी रामबाण दवा है।

अतएव यह प्रकट है कि किसी असहयोगी के लिए जेलकी मर्यादाको भंग करते हुए 'वन्देमातरम्' आदिका घोष करना विहित नहीं है और इसी तरह उसका जेलके नियमोंको चुपके-चुपके भंग करना भी नाजायज है। असहयोगी ऐसा कोई काम नहीं