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आदर्श कैदी

सिद्धान्तोंके कारण वे युग-युग जीते हैं। क्या आप उस सिद्धान्तको, जिसे आपने नागपुरमें पूरी तरह सोच-विचारकर, और बहुत वाद-विवाद के पश्चात् स्वीकार किया था, बदलने जा रहे हैं? जब आपने वह सिद्धान्त स्वीकार किया था, तब आपने एक सालकी कोई सीमा नहीं बाँधी थी। यह एक व्यापक सिद्धान्त है; इसके अन्तर्गत कमजोरसे-कमजोर और बलवानसे-बलवान सब आ जाते हैं और यदि आप मौलाना हसरत मोहानी के इस सीमित सिद्धान्तको स्वीकार करेंगे जिसके अन्तर्गत कमजोर भाई नहीं आते तो आपको अपने इन भाइयोंको संरक्षण देनेका सौभाग्य न मिलेगा। इसलिए मैं आपको पूरे विश्वासमें लेकर कहता हूँ कि आप उनके प्रस्तावको अस्वीकृत कर दें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-१-१९२२

५१. आदर्श कैदी

क्या असहयोगियोंको जेलखानोंमें जेलके नियमोंके खिलाफ, इस तरह 'वन्देमातरम्' का घोष करना चाहिए, जिससे मामूली कैदियोंको दंगा-फसादकी उत्तेजना मिल सकती है, क्या असहयोगियोंको भोजनमें सुधार करवाने तथा दूसरी सुविधाओंके लिए भूख हड़ताल करनी चाहिए? क्या हड़तालके तथा दूसरे दिनों में उन्हें जेलके अन्दर काम बन्द कर देना चाहिए? क्या असहयोगियोंको जेलके ऐसे नियमों को तोड़ने का भी हक हासिल है जो उनकी अन्तरात्माको चोट नहीं पहुँचाते?

कलकत्तेके एक असहयोगी मित्रने एक तार भेजा है। भारतके एक दूसरे प्रान्तसे भी एक असहयोगी मित्रने यह सुनकर कि असहयोगी कैदी जेलकी मर्यादाके अनुसार नहीं बरतते हैं, मुझसे कहा है कि जेलकी मर्यादाके पालनकी आवश्यकताके सम्बन्धमें मैं कुछ लिखूं। दूसरी ओर, मैं ऐसे अनेक असहयोगी कैदियोंको जानता हूँ जो जेलकी मर्यादाका पालन सुयोग्य रीतिसे ठीक-ठीक कर रहे हैं।

आज जब हजारों आदमी जेल जा रहे हैं, यह समझ लेना आवश्यक है कि असहयोगी कैदियोंको अपनी अहिंसाकी प्रतिज्ञाके अनुसार किस तरह बरतना चाहिए। जब हम असहयोग के क्षेत्रकी सीमाओंको नहीं मानते तब वह एक कर्त्तव्य होने के बजाय सब कुछ करनेका एक खुला परवाना, अतएव, एक जुर्म हो जाता है। अच्छे और बुरेका भेद बतलानेवाली रेखा प्रायः इतनी सूक्ष्म होती है कि उसकी पहचान ही नहीं की जा सकती। लेकिन फिर भी यह रेखा तो है और अनुल्लंघ्य है तथा कहाँ है, इसके बारेमें कोई भ्रम नहीं हो सकता।

तब उन लोगोंमें जो कि अच्छे कामोंके लिए जेल गये हैं और जो बुरे कामों के लिए जेल गये हैं, क्या फर्क है? अक्सर दोनों एकसे कपड़े पहनते हैं, एकसा खाना