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५०. भाषण:हसरत मोहानीके प्रस्तावपर–२

२८ दिसम्बर, १९२१

स्वतन्त्रतापर मौलाना हसरत मोहानीके प्रस्तावके विरोधमें दिये गये भाषणका यह संशोधित रूप है:

मित्रो,

श्री हसरत मोहानी के प्रस्ताव के सम्बन्ध में मैंने सिर्फ थोड़ेसे शब्द (हिन्दी में) कहे हैं। मैं आपसे अंग्रेजीमें केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि आपमें से कुछ लोगोंने इस प्रस्तावके सम्बन्धमें जितनी उदासीनता दिखाई है, उससे मुझे दुःख हुआ है। उससे मुझे दु:ख इसलिए हुआ है कि इसमें उत्तरदायित्वकी भावनाका अभाव दिखाई देता है। जिम्मेदार पुरुषों और स्त्रियोंकी तरह हमें याद रखना चाहिए कि हमने केवल एक घंटा पहले क्या किया है। एक घंटा पहले हमने एक प्रस्ताव पास किया है जिसमें वास्तवमें कुछ निश्चित तरीकोंसे खिलाफत और पंजाब के अन्यायोंका निराकरण अन्तिम रूपसे करानेका और जनताको सत्ता दिलानेका उल्लेख है। क्या आप एक अवास्तविक प्रश्न उठाकर भारतीय वातावरणमें यह बम फेंककर अपने मनसे उस सारी स्थितिको भुला देंगे? मैं आशा करता हूँ कि आपमें से जिन लोगोंने पहले प्रस्तावके पक्षमें मत दिया है, वे इस प्रस्तावको हाथमें लेने और इसके पक्षमें मत देनेसे पहले पचास दफा सोचेंगे। संसारके विचारशील लोग हमपर आरोप लगायेंगे कि हम अपनी वास्तविक स्थिति नहीं जानते। हमें अपनी मर्यादाएँ भी समझनी चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानोंमें पूर्ण और अटूट एकता होनी चाहिए। क्या यहाँ कोई ऐसा है जो आज विश्वासपूर्वक यह कह सके कि "हाँ, अब हिन्दू-मुस्लिम एकता भारतीय राष्ट्रीयताका अविच्छेद्य अंग बन गई है? क्या यहाँपर कोई ऐसा है जो मुझसे कह सके कि पारसी और सिख और ईसाई और यहूदी तथा अछूत जिनके बारेमें आपने आज शाम ही भाषण सुना है, ऐसे किसी विचारका विरोध नहीं करेंगे? इसलिए इस कदमसे आपकी कोई प्रतिष्ठा नहीं बढ़ेगी, आपको कोई लाभ नहीं होगा, बल्कि आपकी अपूरणीय हानि हो सकती है। आप ऐसा कदम उठाने से पहले पचास बार सोचिए। सबसे पहले हमें अपनी शक्ति सँजोनी चाहिए; सबसे पहले हमें अपने कार्यकी कठिनाइयोंकी जाँच करनी चाहिए। हमें ऐसे पानी में नहीं जाना चाहिए जिसकी गहराई हम नहीं जानते और हसरत मोहानी के इस प्रस्तावसे आप भारी कठिनाईमें फँसते हैं। मैं आपसे पूरे विश्वाससे कहता हूँ कि यदि आप उस प्रस्तावमें विश्वास करते हैं जो आपने सिर्फ एक घंटा पहले पास किया है तो आप इस प्रस्तावको अस्वीकृत कर दें। जो प्रस्ताव अब आपके सामने है, इससे उस प्रस्तावका सम्पूर्ण प्रभाव मिट जाता है जो आपने केवल एक क्षण पूर्व पास किया है। क्या सिद्धान्त भी कोई ऐसी मामूली चीज जो कपड़ोंकी तरह जब चाहे तब बदली जा सके। सिद्धान्तोंके लिए लोग प्राण दे देते हैं और