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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

ही निष्कर्षपर पहुँच सकते हैं कि यह प्रस्ताव पिछले पन्द्रह महीनोंकी राष्ट्रीय गति-विधियोंका बिलकुल स्वाभाविक परिणाम है। और सरकारकी दमन नीति जिस—अधोगामी—मार्गपर चल रही है यदि आपने उसे तनिक भी समझा है, तो आप केवल इसी निष्कर्षपर पहुँच सकते हैं कि विषय समितिका इस प्रस्तावपर पहुँचना ठीक ही है; और कि एक स्वाभिमानी राष्ट्र वाइसरायकी घोषणाओंका और इस देशमें जो दमन चल रहा है उसका केवल वही जवाब दे सकता है जो कि इस प्रस्तावमें दिया गया है।

स्वयंसेवकोंको जो शपथ लेनी है उसकी धार्मिक बारीकियोंके बारेमें में अंग्रेजी जाननेवाले मित्रोंका कोई समय नहीं लूंगा। उस विषयमें अपने विचार मैं हिन्दुस्तानी में ही प्रकट करना चाहता हूँ। लेकिन मैं चाहता हूँ कि यह कांग्रेस इस प्रस्तावके आशय और परिणामोंको समझ ले। इस प्रस्तावका अर्थ यह है कि हम लाचारी और किसी भी व्यक्तिकी अधीनताकी स्थितिसे ऊपर उठ चुके हैं। इस प्रस्तावका अर्थ यह है कि राष्ट्र अपने प्रतिनिधियोंके माध्यमसे, अपनी इच्छानुसार कार्य करने का संकल्प कर चुका है, जिसमें उसे दुनियाके किसी भी इन्सानकी मदद नहीं चाहिए, केवल एक भगवान्‌की मदद चाहिए।

यह प्रस्ताव जहाँ अपने अधिकार स्थापित करने और दुनियाकी नजरोंसे नजरें मिलनेके, राष्ट्रके अदम्य साहस और संकल्पको प्रकट करता है, वहीं पूरी विनम्रताके साथ सरकारसे यह भी कहता है:"तुम चाहे कुछ भी करो, चाहे तुम हमारा कितना भी दमन करो, पर एक दिन तुम्हें लाचार हो पश्चात्ताप करना ही पड़ेगा; और हमारा तुमसे कहना यह है कि तुम समय रहते सोच लो, इसपर ध्यान दो कि तुम क्या कर रहे हो और यह खयाल रखो कि भारतके ३० करोड़ लोग कहीं हमेशा के लिए तुम्हारे दुश्मन न बन जायें।"

यदि सरकार सचमुच चाहती है कि रास्ता खुला रहे तो यह प्रस्ताव उसके लिए रास्ता बिलकुल खुला छोड़ रहा है। यदि नरमदलीय (माडरेट) दोस्त खिलाफतके झण्डे के नीचे और पंजाबकी—इसलिए भारतकी—स्वाधीनताके झण्डे के नीचे इकट्ठे होना चाहते हैं, तो यह प्रस्ताव उनके लिए भी रास्ता बिलकुल खुला छोड़ रहा है। यदि सरकार न्याय करनेके लिए वस्तुतः इच्छुक है, यदि लॉर्ड रीडिंग वाकई न्याय करनेके लिए ही भारत आये हैं, उससे कम किसी चीजके लिए नहीं आये हैं—और हमें उससे अधिक कुछ नहीं चाहिए—तो मैं उन्हें इस मंचसे, ईश्वरको अपना साक्षी मानकर और यथाशक्ति पूरी गम्भीरताके साथ यह सूचित करता हूँ कि यदि उनका इरादा नेक है तो इस प्रस्तावमें उनके लिए रास्ता खुला है। लेकिन यदि उनका इरादा बद है, तो उनके लिए रास्ता बन्द है, फिर चाहे कितने ही आदमियोंकी बलि क्यों न देनी पड़े और यह दमन चाहे कितना ही भयंकर क्यों न हो जाये। उनके सामने एक गोलमेज सम्मेलन बुलानेका पूरा अवसर है, पर वह एक असली सम्मेलन होना चाहिए। यदि वे एक ऐसा सम्मेलन चाहते हैं जिसमें भाग लेनेवाले सब बराबर हों और एक भी याचक न हो, तो यहाँ रास्ता खुला है और वह हमेशा खुला रहेगा। इस प्रस्तावमें ऐसा कुछ नहीं है जिसमें किसी नम्र और विनयशील व्यक्तिको लज्जित होना पड़े।