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नौ

भव करके प्रकट कर सके । मेरी प्रार्थनाओंमें और भी अधिक गहरी सचाई और नम्रता होनी चाहिए ।" (पृष्ठ ४४२) इस विचारके अनुसार प्रायश्चित्त के रूपमें उन्होंने उपवास किया । अपने कनिष्ठ पुत्र देवदासको १२ फरवरीके अपने पत्रमें उन्होंने उपवासका उद्देश्य समझाते हुए लिखा : "पीड़ा तो प्रसूताको ही भोगनी पड़ती है ।... मुझे भी अहिंसा और सत्य-धर्मको जन्म देना है, इसलिए उपवासादिकी पीड़ा तो मुझे ही भोगनी होगी ।" (पृष्ठ ४१८)

गांधीजीने अपने राजनीतिक कार्यक्रमकी इस पराजयको स्वीकार किया, किन्तु उसका यह अर्थ नहीं है कि स्वतन्त्रता प्राप्त करनेकी उनकी निष्ठामें कहीं भी कोई कमी हुई । वे ब्रिटिश शासनको सुधारना चाहते थे, अथवा समाप्त ही कर देना चाहते थे । लॉर्ड बर्केनहेड कहिए अथवा श्री मॉन्टेग्यु कहिए, के वक्तव्योंमें भारतीय राष्ट्रवादियोंसे यह कहा गया था कि वे भारतके स्वतन्त्र होनेकी आशा छोड़ दें । गांधीजीने इसका जो जवाब दिया उससे सन् १९२० की उनकी मनःस्थितिकी याद आ जाती है, जब वे ब्रिटिश शासनकी बुराइयोंके विरोधमें जैसे जले जा रहे थे और जब वे उसे बार-बार आसुरी शासन कहते हुए थकते नहीं थे : "शक्तिके मदमें चूर और कमजोर जातियोंको लूटने-खसोटनेवाला कोई भी साम्राज्य दुनियामें कभी चिरकाल तक नहीं टिका; और यदि ईश्वर है तो ब्रिटिश साम्राज्य भी अधिक दिनों तक नहीं टिक पायेगा; क्योंकि इसका आधार योजनाबद्ध शोषण और निर- न्तर पशुबलका प्रदर्शन है ।... मैं जानता हूँ कि सात समुद्र पारसे आई हुई इस धमकीके बारेमें मैंने बहुत कड़े शब्द कहे हैं, लेकिन अब वह अवसर आ गया है जब अंग्रेजोंको यह अहसास करा देना बहुत जरूरी है कि जो लड़ाई सन् १९२० में छिड़ी है, वह अन्तिम लड़ाई है ।..." ( पृष्ठ ४८२) । "गर्जन-तर्जन" नामक इस लेखके लिखे जानेके कुछ ही दिन बाद गांधीजी गिरफ्तार कर लिये गये । उनपर लगाये गये तीन अभियोगोंमें से इस लेखका लिखा जाना भी एक था ।

असहयोग आन्दोलनके कारण एक ही कुटुम्बके लोगोंके बीच भी मतभेद पैदा हो गये थे, किन्तु, जैसा कि मालवीय परिवार के सम्बन्धमें लिखी गई टिप्पणीसे स्पष्ट है, (पृष्ठ १७४) गांधीजीने पिता-पुत्र के बीच कभी दरार पदा नहीं होने दी, और जबकि नवयुवक अपनी अन्तरात्मा के आदेशपर निर्द्वन्द्व और मुक्त ढंगसे चलते रहे, उन्हें अपने उदारमना बुजुर्गों के आशीर्वाद से वंचित नहीं होने दिया । इस प्रकार संघर्षकी आँधी और तूफान के बीच भी उन्होंने व्यक्तिगत सौहार्द और पारिवारिक निष्ठाके अनिवार्य कर्त्तव्यका निर्वाह किया ।