पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१२९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०५
भाषण:विषय समितिकी बैठकमें

कैदी, जिनमें कराचीके कैदी भी आते हैं, रिहा कर दिये जायें क्योंकि सरकार कराची के मुकदमोंके समयसे ही पागल हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि वे उन लोगोंके लिए संरक्षण नहीं माँगते जिन्होंने हिंसा की है। श्री गांधीने श्री चक्रवर्तीके एक दूसरे तारका, जिसमें कहा गया था कि कुछ शर्तोंपर कलकत्ताके लोगों का मत एक गोलमेज सम्मेलन किये जानेके पक्षमें है, यह जवाब दिया कि या तो यह सम्मेलन बिना शर्त होना चाहिए, अर्थात् सरकार जो चाहे करती रहे और असहयोगी जो चाहें करते रहें; या यदि शान्ति आवश्यक है तो यह जरूरी है कि पहले शर्तें और सम्मेलनके गठनकी बातें तय हो जायें और सब कैदी, जिनमें कराचीके कैदी भी शामिल हैं, रिहा कर दिये जायें और आपत्तिजनक विज्ञप्तियाँ बिना शर्त वापस ले ली जायें।

भाषण जारी रखते हुए श्री गांधीने कहा:

मैं अपनी स्थिति बिलकुल साफ कर देना चाहता हूँ। व्यक्तिशः मैंने सम्मेलनके प्रश्नको जरा भी महत्त्व नहीं दिया है। मैं समझता कि सम्मेलनके सम्बन्धमें प्रस्ताव पास करना कांग्रेसकी प्रतिष्ठासे मेल नहीं खाता क्योंकि वाइसरायकी घोषणामें ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे लगे कि कांग्रेससे उत्तरकी अपेक्षा की जाती है। दूसरी ओर कांग्रेसके मुख्य प्रस्तावमें, जिसे मैं आशा करता हूँ कि आप कांग्रेसके पण्डालमें सर्वसम्मतिसे पास करेंगे, ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे वाइसराय या किसी दूसरेके भी, जो गोलमेज सम्मेलन कराना चाहता हो, रास्तेमें रुकावट पड़ती हो। बल्कि उस प्रस्तावमें कुछ ऐसा है जो बहुत ही गौरवास्पद है। वह यह है कि यदि सरकार गोलमेज सम्मेलन करना चाहती है तो वह केवल तभी हो सकता है जब हमें हृदय-परिवर्तन होने के संकेत मिलें और हमें यह लगे कि सम्मेलनके कुछ सफल परिणाम होंगे। यदि हम सम्मेलनमें जायें और वहाँसे बिलकुल खाली हाथ लौटें तो उससे हमारे लिए बहुत कठिन समस्या पैदा हो जायेगी। किन्तु मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मुझे वाइसरायकी घोषणामें ऐसी कोई बात नहीं दिखती जिससे मुझमें विश्वास पैदा हो।

उन्होंने आगे कहा कि वाइसराय पहले ही पंजाब और खिलाफतके विषयमें अपनी लाचारी जाहिर कर चुके हैं और हमपर सुधार थोपे हैं। निस्सन्देह इस विचारमें बहुत कुछ सार है कि जब कामकाजी लोग विचार-विमर्श करेंगे तो हम बिलकुल खाली हाथ नहीं लौटेंगे, किन्तु

मैं तो कहता हूँ कि कांग्रेसका यह काम नहीं है कि वह कमजोर आधारपर और केवल तिनके का सहारा पाने की आशासे ऐसी कोई घोषणा करे। डूबते हुए मनुष्यके सिवा तिनके का सहारा दूसरा कौन लेता है? किन्तु कांग्रेस तिनके का सहारा नहीं लेगी, क्योंकि वह तो आज जीवनी शक्तिसे स्पन्दित है। (देरतक तालियाँ)

अन्तमें श्री गांधीने पण्डित मालवीयसे, जिन्हें उन्होंने तालियोंके बीच सबसे महान् भारतीय बताया, अपने विचार व्यक्त करनेकी प्रार्थना की।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, ३०-१२-१९२१