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भाषण:विषय समितिकी बैठकमें

देवके रूपमें प्रतिष्ठित हो गई है, इस प्रजातन्त्रको भावनाकी वृद्धि करते हुए ही इस संसारसे कूच किया।

उन्होंने आगे कहा कि इस दलकी यह इच्छा थी कि प्रस्तावमें ऐसा संशोधन कर दिया जाये जिससे उन वकीलों, अध्यापकों और दूसरे लोगोंकी दुष्टतापूर्ण अपमानसे रक्षा हो सके जो यद्यपि कांग्रेसके आदेशानुसार विशेष रूपसे त्याग नहीं कर सके हैं पर दूसरे असहयोगियोंसे कम देशभक्त और ईमानदार नहीं हैं। में प्रस्तावमें ऐसा कोई वाक्य रखनेका विरोधी हूँ, क्योंकि इसका महा अनर्थकारी अर्थ किया जाना सम्भव है, परन्तु मैं इस बातको पूरा जोर देकर कहता हूँ कि हम लोगोंको उन सब लोगों का सम्मान अवश्य करना चाहिए जो यद्यपि असहयोगियोंकी दृष्टिसे कमजोर हैं, परन्तु जो देशभक्ति में अवश्य ही किसीसे कम नहीं हैं। मैं वकीलोंका छिद्रान्वेषण नहीं कर सकता, क्योंकि उन्होंने उस समय देशको अनुपम सेवा की है जब और लोग भयसे काँपते रहते थे।

गांधीजीने आगे कहा:

मैं आप लोगों में से प्रत्येकसे अनुरोध करता हूँ कि आप लोग यहाँसे नरम दलवालों, वकीलों, अध्यापकों, सरकारी नौकरों और खुफिया पुलिसके लोगोंके प्रति मनमें सद्भाव लेकर जायें। नरम दलवाले हमारे देशभाई हैं। आज वे हमारी ही पंक्तिमें आकर खड़े हो रहे हैं और जब वे देखते हैं कि देशकी स्वाधीनता खतरेमें पड़ गई है तब वे अपने विचारोंको बिलकुल निर्भीक होकर व्यक्त कर रहे हैं। 'लीडर' और 'बंगाली ' के सम्पादकीय लेखोंको पढ़कर आत्माको आनन्द होता है। क्या हम सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जीकी[१] सहायतासे सदाके लिए वंचित होनेके लिए तैयार हैं? जब-जब उनका किसी रीतिसे अपमान किया जाता है तब-तब मैं बिना आँसू बहाये नहीं रह सकता। मैं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीसे महाराष्ट्र दलकी उस स्तुत्य भावनाको ग्रहण और धारण करनेका अनुरोध करता हूँ जिससे प्रेरित होकर उसने अपनेसे भिन्न मत रखनेवालों के प्रति सहिष्णुता प्रकट करनेका आग्रह किया है। मुझे पूरा निश्चय है कि जब त्यागका समय आयेगा तब महाराष्ट्र बंगालसे कदापि पीछे नहीं रहेगा, बल्कि बहुत सम्भव है, उसका नाम सूचीमें सबसे ऊपर रहे।

महात्माजीने कहा कि इतनी कैफियतके बाद मुझे आशा है कि महाराष्ट्र दलके संशोधनका विरोध न किया जायेगा, क्योंकि मैं चाहता हूँ कि जिस भावनासे प्रेरित होकर यह प्रस्तुत किया गया है उसको सब असहयोगी अपने भीतर उतारें।

अन्तमें गांधीजीने असहयोगके कार्यक्रमों में अहिंसाकी प्रधानतापर जोर देते हुए कहा:

या तो हमें इस कार्यक्रममें पूरा विश्वास रखकर नये वर्ष में पैर रखना और विद्युत् वेगसे इसे समाप्त करना होगा या अहिंसाका भक्त रहने के करारको तोड़

  1. १८४८-१९२५; १८९५ और १९०२ में कांग्रेसके अध्यक्ष और बादमें दलके नेता रहे।