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४४. भाषण:विषय समितिको बैठकमें[१]

२५ दिसम्बर, १९२१

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक यहाँ आज प्रातःकाल आरम्भ हुई और उसमें पूरे दिन गांधीजीके रखे हुए मुख्य प्रस्तावपर विचार किया जाता रहा। यह प्रस्ताव कांग्रेस स्वयंसेवक दलका संगठन करने, सविनय अवज्ञा आन्दोलनको बढ़ाने और गांधीजीको या उनके बाद नियुक्त किये जानेवाले अन्य लोगोंको संकटकालमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी ओरसे कार्रवाई करनेका अधिकार देनेके सम्बन्धमें था। … विरोधी पक्षने प्रस्तावमें से उन अंशोंको, जिनमें प्रतिज्ञा जबतक कायम है। तबतक हिंसाका आश्रय लेनको सम्भावनाका या उसका विचार तक करनेका निषेध किया गया था, निकाल देनेकी बार-बार माँग की। इस पक्षका नेतृत्व ऑल इंडिया मुस्लिम लीगके मनोनीत अध्यक्ष हसरत मोहानीने[२] किया। उनका कहना था कि यदि अहंता असफल हो जाये तो उस अवस्थामें उनके धर्ममें हिंसाका आश्रय लेनेकी अनुमति दी गई है।

बहससे मालूम हुआ कि इस सम्बन्ध में स्वयं मुसलमान सदस्योंमें मतभेद है। उनमें से कुछने मत व्यक्त किया कि मौ॰ हसरत मोहानीके संशोधनोंको स्वीकार करनेसे कांग्रेसका सिद्धान्त ही बदल जायेगा।…

अपना प्रस्ताव उपस्थित करते हुए गांधीजीने एक लम्बा भाषण दिया। उन्होंने कहा, कल शाम मैंने महाराष्ट्र दलके नेताओंके साथ विचार-विमर्श किया था। उसके फलस्वरूप मैंने अपने मूल प्रस्तावमें दो-एक छोटे-मोटे परिवर्तन-परिवर्द्धन कर लिये हैं। महाराष्ट्र दलको असहयोग कार्यक्रमकी सभी बातें पूर्ण रूपसे स्वीकार हैं। परन्तु उसके कुछ अंशोंके विषय में उसका असन्तोष है। इस असन्तोषको दलके नेताओंने व्यक्त किया। मैं सबको विश्वास दिलाता हूँ कि उक्त परिवर्तनों-परिवर्द्धनोंमें असहयोगके प्रधान सिद्धान्तका रत्ती भर भी त्याग नहीं किया गया है। फिर भी महाराष्ट्र दलका और अधिक निष्ठायुक्त सहयोग प्राप्त करना निश्चित हो गया है। महाराष्ट्र दल, बल और त्यागमें बेजोड़ है, उसने भूतकालमें बड़े-बड़े कार्य किये हैं और भारत में प्रजातन्त्रकी अदम्य भावना भर देना उसीका कार्य है। इस दलके नेताने[३], जो बादमें सारे भारतके नेता हुए और जिनकी मूर्ति करोड़ों देशवासियोंके हृदयोंमें आराध्य

  1. यह बैठक अहमदाबादमें हुई थी।
  2. १८७५-१९५१; राष्ट्रवादी मुसलमान नेता। खिलाफत आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया।
  3. लोकमान्य तिलक।