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परित्याग नहीं कर सके हैं। काठियावाड़पर पाश्चात्य सभ्यताका अपेक्षाकृत कम प्रभाव होना चाहिए। काठियावाड़की शुष्क भूमिमें तो मजबूत, सरल, शूरवीर, भोले तथा उदार मनुष्योंका जन्म होना चाहिए। यदि इसके बजाय काठियावाड़के शहरोंमें सुखोपयोग बढ़ता ही चला जाये तो काठियावाड़से हमें जो बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं उनका क्या होगा? यदि काठियावाड़ स्वराज्य-यज्ञमें अपना पूरा योगदान नहीं करेगा तो मुझे लगता है कि उसे हिन्दुस्तानसे अलग हो जाना चाहिए। मुझे यह उम्मीद है कि जब जेल जानेका समय आयेगा तब काठियावाड़ी अपना पूरा योगदान देंगे। लेकिन यदि खादी पहनने लायक सादगी भी हम लोगोंमें नहीं आई है तो हम जेलकी सादगीको किस तरह बरदाश्त कर सकेंगे? जहाँ एक ओर देशबन्धु दास खादी पहनते हैं, चरखा चलाते हैं; मौलाना शौकतअली, जिनके लिए खादी पहनना बहुत कठिन काम था, अब खादी पहनने लगे हैं और जेलमें चरखा चलाते हैं; वहाँ दूसरी ओर काठियावाड़के नागरिक क्या खादीका त्याग करेंगे? अब मैं समझ सकता हूँ कि लोग मुझसे यह शिकायत क्यों करते थे कि काठियावाड़में खादी बुनी तो बहुत जाती है लेकिन वहाँ उसकी खपत कम है। क्या कभी ऐसा भी समय आयेगा जब काठियावाड़की हृष्ट-पुष्ट औरतें बेशक बाजरेकी रोटी बनायेंगी और सवेरे छाछ बिलोकर बढ़िया मक्खन निकालेंगी; लेकिन बाजरेकी रोटी कुत्तोंको डाल देंगी और पाचनशक्ति मक्खन पचाने लायक न रहनेसे स्वयं बिस्कुट और चाय लिया करेंगी। और चूंकि काठियावाड़का गेहूँ भारी पड़ता है और बहुत लाल होता है इसलिए बम्बईसे मशीनका आटा मँगवाकर उसकी चपातियाँ बनाकर खाया करेंगी! यदि कोई ग्रीनकी तरह राजाओंकी लड़ाइयोंके इतिहासको न लिखकर जनताके उत्थान और पतनका हाल लिखने बैठ जाये तो वह यह बात अवश्य सिद्ध कर देगा कि हिन्दुस्तानमें जैसे-जैसे महीन और मुलायम कपड़ेका आयात बढ़ता गया वैसे-वैसे हिन्दुस्तान के लोगोंके शरीरोंका गठन ढीला पड़ता गया और उनका मनोबल कम होता गया। काठियावाड़की छः फुट ऊँची रबारी स्त्रीको यदि कोई जापानी मलमलकी रंगबिरंगी साड़ी दे तो क्या वह उसे पहनेगी और उसे पहने हुए अपने ढोर चरायेगी। हम तो रास्ता ही भूल गये हैं। हम अन्तरके श्रृंगारको छोड़कर बाह्य सजावटके मोहमें पड़ गये हैं। जिसके फलस्वरूप हम अपना देश अपने हाथसे गँवा बैठे हैं, अपनी देह खो बैठे हैं तथा आत्माको मूर्छित कर चुके हैं।

क्या काठियावाड़के नवयुवक बातें बनाना छोड़कर कपड़ा बुनने लगेंगे? क्या काठियावाड़की औरतें श्रीमती वासन्तीदेवीकी भाँति खादी बेचनेके लिए निकलेंगी? क्या काठियावाड़की जनता ढेढ़ और भंगी भाइयोंकी पुकारको सुनेगी? उनके स्पर्शसे अपवित्र हो जानेवाले लोगोंको जेल नहीं जाना है। वे जेल जाने के योग्य नहीं हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५-१२-१९२१