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४३. टिप्पणियाँ
होम करते हाथ जले

किसी पत्रका सम्पादन करना कोई आसान काम नहीं है; यह बात में अपने लम्बे अनुभवसे समझ रहा हूँ। सम्पादकको पहले तो अपनी भूलोंके लिए उत्तरदायी होना पड़ता है। इसके बाद उसे उसका सहायक जो लिखे उसकी जिम्मेदारी लेनी पड़ती है तथा संवाददाता अथवा बाहरके लेखकों की भूलोंके लिए उत्तरदायी बनना पड़ता है। कम्पोजिटर भूल करे तो भी सम्पादक उत्तरदायी होता है और प्रूफ-शोधक भूल करे तो भी सम्पादकका ही मरण होता है। मशीन टूट जाये और समयपर अखबार न जाये अथवा ठीक-ठीक अक्षर न उठें तो इन सबके लिए भी सम्पादक उत्तरदायी है। वह सिर्फ लेख लिखकर ही भार-मुक्त नहीं हो सकता। इन सबके उदाहरण मेरे पास मौजूद हैं। लेकिन इस नवीनतम उदाहरणको पढ़कर पाठक हँसेंगे। उस भूलके कारण तो एक भाईको बहुत बड़ी गलतफहमी हो गई। ११ दिसम्बरके 'नवजीवन' में पारसी भाई-बहनोंसे सम्बन्धित टिप्पणीमें[१] निम्नलिखित वाक्य है: "पारसी भाई-बहनोंको इतना आश्वासन तो मैं देता हूँ कि ऐसे सैकड़ों हिन्दू और मुसलमान हैं जो उनके लिए और इसी प्रकार ईसाई आदि अन्य अल्पसंख्यक समाजोंके लिए अपने प्राण दे सकते हैं।" मूलमें "वि.[२] नानी[३]" शब्द थे। कहनेका आशय तो यह था कि पारसी, ईसाई आदि छोटी कौमोंकी रक्षा करने के लिए सैकड़ों हिन्दू और मुसलमान तैयार हैं। इसमें "वि" के बादका बिन्दु उड़ जाने से "अजमेर गया"का "आज मर गया" वाली बात हो गई है। और एक ईसाईने इसका उलटा अर्थ निकालकर मुझे उसपर उलाहना दिया है। इसी विषयपर लिखे मेरे अन्य लेखों तथा इस वाक्यकी रचनाको ध्यानमें रखते हुए उलटा अर्थ करनेकी कोई गुंजाइश नहीं है। तथापि अगर 'नवजीवन' से अपरिचित व्यक्ति इतने ही अंशको पढ़े तथा जैसा ऊपर लिखा है वैसा उलटा अर्थ करे अथवा समझे तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है। इस अनुच्छेदको लिखनेका एक उद्देश्य उपर्युक्त ईसाई भाईसे और उनकी भाँति ही अगर किसी और मनुष्यको गलतफहमी हो गई हो तो उससे क्षमा-याचना करना है। इसका दूसरा उद्देश्य यह है कि सभी पाठक इससे यह शिक्षा ग्रहण करें कि जहाँ प्रसंगके विरुद्ध अर्थ किया जा सकता हो वहाँ अगर प्रसंगके अनुकूल अर्थकी गुंजाइश हो तो वे प्रसंगके अनुकूल अर्थ ही करें। और इसका तीसरा उद्देश्य सम्पादकके लिए दयाकी भिक्षा माँगना है। सम्पादक हर किसी वस्तुका ध्यान नहीं रख सकता यह जानते हुए पाठकोंको उचित है कि वे उसके नामसे प्रकाशित पत्रके अनिवार्य दोषोंको दरगुजर कर दें। लेकिन यह

  1. देखिए खण्ड २१।
  2. वगैरा-वगैरा, आदि।
  3. छोटी।
२२-७