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वक्तव्य:वाइसरायके भाषण के सम्बन्धमें एसोसिएटेड प्रेसको

ब्रिटिश जनताके विरुद्ध आन्दोलन करना है। अगर सचमुच वाइसराय साहबका मत यही है, अगर नौकरशाही के कार्योंके विरुद्ध जोरदार और प्रभावकारी आन्दोलन करना और उसकी असलियतको खोलकर दिखाना ब्रिटिश जनताका अपमान करना है, तो फिर मुझे अपनेको अपराधी मानना ही पड़ेगा। परन्तु तब मुझे विनीत भावसे यह भी कहना पड़ेगा कि वाइसराय महोदयने भारतमें उत्पन्न होनेवाली इस महान् राष्ट्रीय जागृतिको बिलकुल ही उलटे रूपमें ग्रहण किया है, उसको समझा ही नहीं है। मैं कहता हूँ और हजार बार कहूँगा कि हमारा आन्दोलन भूमण्डलके किसी भी राष्ट्र या किसी भी जनसमाजके विरुद्ध आरम्भ नहीं किया गया है। वह तो सीधा-सीधा उस शासन-प्रणाली के विरुद्ध आरम्भ किया गया है जिसके अन्तर्गत आज भारत सरकारका काम चलाया जा रहा है और मैं दावेके साथ कहता हूँ कि वाइसराय साहबकी कोई भी धमकी या तदनुसार कार्रवाई इस आन्दोलनका गला न घोट सकेगी और न इस जागृतिको मेट ही सकेगी।

लॉर्ड रोनाल्डशेके भाषण के उत्तरमें[१] मैं कह चुका हूँ कि हम असहयोगियोंने हमला शुरू नहीं किया है। हम आक्रमणकारी नहीं हैं। अतः हमें अपना हाथ भी नहीं खींचना है, न अपने किसी कार्यको रोकना है। सरकारका ही कर्त्तव्य है कि वह अपनी आक्रामक कार्रवाइयोंको रोके जो हिंसाके विरुद्ध नहीं, बल्कि एक वैध, अनुशासित, दृढ़ परन्तु सर्वथा अहिंसात्मक आन्दोलनके विरुद्ध की गई हैं। शान्तिपूर्ण वातावरण पैदा करने की जिम्मेदारी भारत सरकार और केवल भारत सरकारकी है, बशर्ते कि वह ऐसा करना चाहे। उसने खुद ही बारूद बिछाई और खुद ही उसपर बमका गोला भी पटका और अब आश्चर्य कर रही है कि उसकी बारूद भीषण विस्फोट उत्पन्न करने लायक क्यों न हुई।

इस समय फौरी प्रश्न खिलाफत[२], पंजाब और स्वराज्यके प्रति किये गये अन्यायों- के निराकरणका नहीं है। इस समय तो फौरी प्रश्न है, सार्वजनिक सभाएँ करने और शान्तिमय कार्योंके निमित्त सभाएँ और संघ स्थापित करनेके हमारे हकका और हम अपने इसी हकको महफूज रखने के लिए लड़ रहे हैं। हमारी यह लड़ाई केवल असहयोगियोंकी ओरसे नहीं बल्कि समूचे भारतकी ओरसे, किसानोंसे लेकर राजा-महाराजाओंकी ओरसे, सम्पूर्ण राजनीतिक पक्षों और विचारधाराओंकी ओरसे लड़ी जा रही है। समाजके संघटित विकासकी यह प्रधान शर्त है और वाइसरायके उद्गारोंमें मुझे आदिसे अन्ततक इसके विरोधी सिद्धान्तके आगे सिर झुकानेका ही आग्रह दिखाई देता है—ऐसे सिद्धान्तको जिसे स्वातन्त्र्यपर आधारित कानूनके एक भूतपूर्व समर्थकने एक ऐसे वातावरण में फँसकर अपनाया है जिसमें कानून और व्यवस्थाके संरक्षणकर्त्ता स्वयं ही कानून और व्यवस्थाकी कोई परवाह नहीं करते। इसके दृष्टान्त देनेके लिए इतना ही काफी है कि मैं उन हमलोंका उल्लेख कर दूं जो अकारण ही, छुटपुट तौरपर नहीं, एक बड़े पैमानेपर पंजाब, दिल्ली और संयुक्त प्रान्तमें किये जा रहे हैं। मुझे इसमें

  1. देखिए, "वक्तव्य:गोलमेज परिषद्के सम्बन्धमें", २०-१२-१९२१।
  2. देखिए "टिप्पणियाँ", २२-१२-१९२१ का उप-शीर्षक "गोलमेज परिषद्"।