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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

केवल जिन्दा रहना भी भला कोई जीवन है? क्या अच्छा हो जो में यह कह सकूँ, नहीं कलकत्तेके विद्यार्थी मनुष्योंकी तरह जिन्दगी बसर करते हैं, वे जितेन्द्रलाल बनर्जीकी तरह जीवित रहते हैं। अब उनका शरीर तो कैदखाने में है। क्या कलकत्तेके इतने विद्यार्थियों में ऐसा कोई नहीं जो उनकी आत्माकी इस प्रकारको सुनने लायक हृदय रखता हो?

इन अपीलोंको महज भावुकताकी कोटिमें रखकर कोई इनका महत्त्व कम न करे। अब आगे बंगालकी भावनाको कोई हलकी चीज न समझे, उसकी दिल्लगी न उड़ाये। बंगाल आज माताकी पुकारपर दौड़ पड़ा है। उसपर मेरा दृढ़ विश्वास होते हुए भी खुद मैंने उससे इतनी आशा नहीं की थी। यह चमत्कार अकेले कलकत्ते या चटगाँव में ही नहीं दिखाई दे रहा है, बल्कि उन सभी स्थानोंपर है जहाँ-जहाँ दमनने अपना जोर दिखाया है। कोरी अपीलोंसे अथवा महज भावुकतावश संसारमें कोई भी ऐसा कष्ट सहने को तैयार नहीं होता। बंगालने सिद्ध कर दिया है कि उसकी भावुकतामें पुरुषार्थं भरा हुआ है।

एक आग्रहपूर्ण सन्देश

मैक्समूलरने कहीं लिखा है कि सत्यको बार-बार तबतक दोहराते जाना चाहिए जबतक कि वह लोगों के हृदयमें अच्छी तरह पैठ न जाये, उसी तरह जिस तरह कि ईश्वरका नाम बार-बार रटना व्यर्थ नहीं होता, और उसे जान-बूझकर तबतक बार- बार दोहराना पड़ता है जबतक कि हम उसका साक्षात्कार न कर लें। सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिने सरदार खड़कसिंह द्वारा जेलसे भेजे गये दूसरे सन्देशको प्रचारित किया है। लगता है कि गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिका प्रचार विभाग बड़ा ही कार्यक्षम है। उनका यह दूसरा सन्देश एक तरह से पहले सन्देशकी शाब्दिक पुनरावृत्ति ही है। सरदार साहबने खालसा लोगोंसे कहा है कि हर सिखको खादी पहननी चाहिए और सादा भोजन करना चाहिए। सफलताकी कुंजी है—अहिंसा। उन्होंने यह भी आशा व्यक्त की है कि आम तौरसे सिखोंको और खास तौरसे अकाली जत्थोंके सभी सिखोंको चाय पीना एकदम छोड़ देना चाहिए। सरदार साहबकी बात सोलहों आने ठीक है। सादे जीवन के बिना उच्च विचार सम्भव नहीं। यदि हमें अपने-आपको जनताके साथ घुला मिलाकर रखना है तो हमें अपना जीवन अधिकसे-अधिक सादगीपूर्ण बनाना चाहिए। सादगी इतनी बरतनी चाहिए कि हम स्वस्थ रह सकें। हमारे पहनने के लिए खादी के अतिरिक्ति अन्य कोई वस्त्र हो ही नहीं सकता। सादगीका जीवन ही अहिंसासे मेल खाता है। सरदार साहबने चायसे दूर रहनेपर जो इतना जोर दिया है, वह मेरी समझ में नहीं आया। मुझे ठीक मालूम नहीं कि क्या सिख लोग अन्य मादक पेयोंको अपेक्षा चायको ही सबसे ज्यादा अपनाते जा रहे हैं। मैं तो यह सोच रहा था कि उनको सभी प्रकारके मादक पेयोंका प्रयोग छोड़ने के लिए कहना चाहिए। लेकिन शायद कुछ सिख मित्र इसका खुलासा करेंगे कि चायका प्रयोग बन्द करनेपर इतना जोर क्यों दिया गया है।