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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

लाजपतराय तथा उनके साथियोंके मुकदमे जेलके अन्दर चलाये जानेपर तथा लालाजीके घरवालों को छोड़कर और लोगोंके वहाँ उपस्थित रहनेकी मनाहीपर अपना तीव्र असन्तोष प्रकट किया है। बिहार और असमके कितने ही वकीलोंने वकालत बन्द कर देनेकी सूचना दी है। दिल्लीसे डा॰ अन्सारी लिखते हैं:

सबसे अधिक आशाप्रद चिह्न तो यह है कि हमारी सेवाओंका बड़ा अच्छा असर वकीलों और घनी लोगोंपर हुआ है। उन्होंने एक संघ बनाया है। उसके द्वारा वे उन लोगोंके कुटुम्बियोंकी सहायता करेंगे जो जेल जा चुके हैं। कितने ही लोगोंने इसमें अच्छी-अच्छी रकमें दी हैं। अबतक कोई २,००० रु० मासिक चन्देका इन्तजाम हो चुका है। उन लोगोंने यह सब हमारे अनुरोध या इच्छा प्रकट किये बिना केवल परोपकार के भावसे प्रेरित होकर यह व्यवस्था की है।

विद्यार्थियोंका विरोध

जो हाल वकीलोंका है वही विद्यार्थियोंका भी है। बंगालके कितने ही कालेज खालीसे हो गये हैं। कुछ विद्यार्थियोंने कुछ समय के लिए और कुछने अनिश्चित समयके लिए हड़ताल कर दी है। लाहौरके दयालसिंह कालेजके लड़कोंने गत १६ तारीखसे सिर्फ खादी पहनने तथा युवराजके स्वागतके बहिष्कारका निश्चय किया है। उन्होंने उन नेताओंको जो जेल जा चुके हैं बधाई भी भेजी है। दयालसिंह कालेजके विद्यार्थियोंका यह काम बहुत ठीक हुआ है। यद्यपि श्रीमती वासन्तीदेवीकी हृदयस्पर्शी अपीलसे विद्यार्थी-वर्गका हृदय इतना अभिभूत नहीं हुआ कि वे कालेज छोड़ दें, तथापि उनसे आशा है कि वे इस आन्दोलनमें, जो कि दिनपर-दिन प्रबल और शक्तिशाली होता जाता है, अपने योग्य हाथ अवश्य बँटायेंगे। कलकत्तेके एक समाचारपत्रसे एक खबर नीचे दी जाती है। इसपर उनको ध्यान देना चाहिए:

छतरिया राष्ट्रीय पाठशालाके दो लड़कों—९ वर्षीय रामप्रसाद और १० वर्षीय हरिवंश मिश्र—को जिला मजिस्ट्रेटकी आज्ञासे उनके अर्दलीने उनके सामने बड़ी बेरहमी से बेंत लगाये। उनका कसूर यह था कि वे सरकारी नौकरी छोड़नेके सम्बन्ध में फतवा पढ़ रहे थे। परन्तु उन बहादुर लड़कोंने मजिस्ट्रेट से कहा कि तुमसे जितने हो सकें उतने बेंत लगाओ। चाहे हमारी कमर टूट जाये, चाहे पसलियाँ टूट जायें; पर हम फतवा पढ़ना तो नहीं छोड़ सकते।

हार्दिक उद्गार

कष्ट सहनकी इन ज्वालाओंकी बदौलत कुछ दिव्य विचार सुन्दर भाषाके वेषमें प्रकट हुए हैं। आजतक कितने ही विचारपूर्ण भाषण हुए; कितने ही अभिनन्दनपत्र पढ़े गये। जिनसे कानोंको भी सुख मिला, चित्तको भी आनन्द हुआ। लालाजीके घोषणापत्रको देखिए, पण्डित मोतीलालजीके सन्देशको पढ़िए, या मौलाना अबुल कलाम आजाद के पैगामको सुनिए, उनकी खूबियोंपर मुग्ध हुए बिना कोई रह ही नहीं सकता। परन्तु सभापति महोदयके भाषण और लेख जितने ओजपूर्ण, मर्मस्पर्शी और प्रगल्भ हैं