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सात

तरह व्यवहार कर रहे हैं" (पृष्ठ ३१२) । गांधीजीने यह लेख अंग्रेजीकी अपनी प्रिय "लीड काइंडली लाइट "वाली प्रसिद्ध प्रार्थनाका उद्धरण देकर समाप्त किया ।

इसके बाद वह दुर्घटना हुई जिसे गांधीजीने “चौरीचौराका हत्याकाण्ड ( पृष्ठ ४३८) कहा । ४ फरवरी १९२२को उत्तर प्रदेशके गोरखपुर जिलेके चौरीचौरा गाँवमें जनताका जुलूस निकला । पुलिसकी ज्यादतियोंसे उत्तेजित होकर उसने स्थानीय पुलिस स्टेशनकी इमारत में आग लगा दी, इक्कीस सिपाहियोंको जानसे मार डाला और उनके शव फूँक दिये (पृष्ठ ४०७ और ४३८-९) । गांधीजीने इस घटनाको “दैवी चेतावनी " (पृष्ठ ४४६-५०) की तरह ग्रहण किया और जो कदम आगे बढ़ाया था, उसे वापस ले लिया । उनके कहनेपर १२ फरवरीको कांग्रेस कार्यकारिणीने एक प्रस्ताव द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलनको अनिश्चित कालके लिए मुल्तवी कर दिया और जनताको सलाह दी कि असहयोग कार्यक्रममें समाविष्ट रचनात्मक कामोंपर ध्यान लगाया जाये । (पृष्ठ ३९९-४०३) सार्वजनिक सविनय अवज्ञाके लिए बारडोलीके कार्यकर्त्ताओंकी जो टोली तैयार हो रही थी उनमें से हरएकने, फिर वे तरुण थे या वृद्ध, गांधीजीसे कहा कि एक बार सरकारको चुनौती दे चुकनेके बाद यदि आप पीछे हटेंगे तो सारी दुनियाके सामने देशका सिर नीचा हो जायेगा । उनका यह कथन मानों राष्ट्रका ही कथन था । गांधीजी राष्ट्रके मानसको जानते थे । जवाहरलाल नेहरू उन दिनों जेलमें थे। गांधीजीने उन्हें लिखा: “ देखता हूँ, तुम सबको कार्य- समितिके प्रस्तावोंसे भयंकर पीड़ा हुई है ।" (पृष्ठ ४५७) किन्तु प्रस्तावोंके विरोधमें जो तूफान उठा, वे उसमें अडिग रहे और उन्होंने कहा कि मैं ऐसे किसी भी आन्दोलनका नेतृत्व नहीं कर सकता जो " आधा हिंसक और आधा अहिंसक हो, फिर चाहे उसके बलपर स्वराज्य ही क्यों न मिलनेवाला हो ।" (पृष्ठ ३७० ) । क्योंकि वे जानते थे कि वह उनकी कल्पनाका स्वराज्य नहीं हो सकता ।

२४ और २५ फरवरीको दिल्लीमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी जो बैठक हुई उसमें कार्यकारिणीके उक्त प्रस्तावोंका 'भीषण विरोध' किया गया (पृष्ठ ५२६) । गांधीजीने उस बैठकमें कहा : "मेरा रोग तो असाध्य है ।... मैं इस दुनियामें अगर किसी जालिमके आगे सिर झुकाता हूँ तो वह है 'मेरे अन्तस्तलकी शान्त, सूक्ष्म आवाज'। " (पृष्ठ ५२५) । कार्यकारिणी द्वारा पास किया गया उक्त प्रस्ताव बिना किसी बड़े फेरफारके अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने भी स्वीकार कर लिया, किन्तु बैठकके दरम्यान जो कुछ हुआ, उससे गांधीजी पहलेसे भी अधिक दुःखी हो गये । किन्तु साथ ही उन्हें परिस्थितिकी भी अधिक ठीक जानकारी हो गई । (पृष्ठ २५६) । उन्हें कुछ दिनोंसे इस बातका आभास तो था कि अहिंसाको नीतिकी दृष्टिसे भी सभी असहयोगी सदा पालनीय नहीं मानते । सविनय अवज्ञा आन्दोलनके मुल्तवी किये जानेके बाद उन्होंने जवाहरलालको लिखा : "मैं तुम्हें बता दूँ कि इस घटना के बाद मेरे लिए कोई चारा ही नहीं रह गया था । वाइसरायको पत्र भेजते समय मन शंकाओंसे खाली नहीं था, जैसा कि उसकी भाषासे जाहिर है ।... ये सब खबरें और दक्षिणसे अन्य खबरें भी मेरे पास पहुँची थीं कि चौरीचौराके समाचारोंने बारूद में