पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१०९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८५
टिप्पणियाँ

उस समय उनसे २,००० रु० की जमानत माँगी गई थी। पण्डितजीकी सलाहपर जमानत जमा कर दी गई थी और एक दिन बन्द रहने के बाद यह अखबार फिर निकलने लगा था। जमानत इस महीनेकी ७ तारीखको जमा की गई थी। २० तारीखको वह जब्त कर ली गई। नीति या लहजे में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था क्योंकि उसमें बदलने के लिए कुछ था भी नहीं। 'इंडिपेंडेंट' का सम्पादन एक बैरिस्टर द्वारा किया जाता था जो लिखने में सदा संयम और मर्यादाका ध्यान रखते थे। श्री जोजेफके बन्दी बनाये जाने के बाद यह काम श्री महादेव देसाईने अपने हाथमें ले लिया था और उनकी शैली से 'यंग इंडिया' के पाठक अपरिचित नहीं हैं। जमानत "हमें यह काम पूरा करना है" और "श्रीमती नेहरूका सन्देश" शीर्षकसे उसमें प्रकाशित दो लेखोंके कारण जब्त की गई। पहले लेखमें स्वयंसेवकोंकी सूची दी गई है और दूसरेमें वस्तु-स्थितिके बारेमें बड़े संतुलित विचार व्यक्त किये गये थे। लेकिन स्थानीय सरकारका कथन है कि इन लेखोंमें "ऐसे शब्दोंका समावेश है जो कानून और व्यवस्था कायम रखनेके काममें हस्तक्षेप करते हैं।" कानून क्या है यह हमें मालूम है, यह अधिसूचना निकाली गई है कि स्वयंसेवक दलको भंग कर दिया जाये; व्यवस्था क्या है यह भी हम जानते हैं, क्योंकि सार्वजनिक सभाओंपर रोक लगा दी गई है। और यह निश्चित है कि समस्त राष्ट्रवादी अखबारोंकी तरह ही 'इंडिपेंडेंट' ने भी ऐसे कानून और ऐसी व्यवस्थामें हस्तक्षेप करनेके लिए प्रोत्साहन दिया है।

लेकिन सरकारको जल्दी ही अपनी गलती मालूम पड़ जायेगी। 'इंडिपेंडेंट' मर सकता है, लेकिन जनतामें जो भावना उसने जाग्रत कर दी है वह कभी नहीं मर सकती। 'इंडिपेंडेंट' भले ही न छपे, उसे लिखा तो जा ही सकता है। सम्पादकको जहाँ मालिकोंके हितोंकी रक्षा करनी पड़ती है वहाँ अपने व्यक्तित्वको भी अक्षुण्ण रखना पड़ता है। महादेव देसाई सम्पादकके रूपमें अब भी जीवित हैं, भले ही उनका मुद्रकवाला रूप थोड़ी देरके लिए सो गया हो। और मुझे आशा है कि अब वे छापने के स्थानपर अपना अखबार लिखना शुरू कर देंगे। खबरों और सम्पादकीय टिप्पणियोंको मजबूरीके कारण और भी सार रूपमें प्रस्तुत करनेसे पाठकोंका ही लाभ होगा। अधिक संख्या में प्रतियाँ तैयार करने के लिए मेरा सुझाव है कि रोनियो, साइक्लोस्टाइल अथवा क्रोमोग्राफसे काम लेना चाहिए। और यदि कानून और उसकी मनमानी व्याख्या सरकारको साइक्लोस्टाइल अथवा रोनियो मशीन तक जब्त कर लेनेकी अनुमति देती हो, तब भी श्री देसाईकी लेखनी तबतक देशकी सेवा करती रह सकती है जबतक खुद उनको पकड़कर इलाहाबादकी सेन्ट्रल जेलमें न डाल दिया जाये। राष्ट्रवादी अखबारोंके मालिक खबरदार रहें। उन्हें आखिरी पाई खर्च होने तक अपना संकल्प नहीं छोड़ना चाहिए।

आशाप्रद चिह्न

सरकार के वर्तमान दमनके कारण सारे भारतके वकीलों और विद्यार्थियों में नई जागृति आई है। कलकत्तेके कितने ही वकील वाइसरायके स्वागतमें शरीक नहीं हुए। हावड़ाके कई वकीलोंने वकालत बन्द कर दी है। पंजाबके बार एसोसिएशनने लाला