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टिप्पणीयाँ

अपनी बहादुरीका सबूत चुके हैं। और हमें कुछ भी अजब नहीं लगता जब उनकी पत्नी गर्व के साथ कहती हैं: "उम्मीद है मैं उनका काम अपनी बिसात-भर जारी रखूँगी।" पाठकोंको इसपर अविश्वास नहीं करना चाहिए। अलीगढ़ के विद्यार्थियोंको मैं जानता हूँ। वे लोग खुर्शीद बगमके इशारेपर चलने के लिए पूरे उत्साहसे तैयार रहेंगे जैसा कि शायद उन्होंने ख्वाजा साहबके लिए नहीं किया। जब एक पाक दिल औरत अपनी पवित्रतामें बहादुरी और मातृत्वके गुण मिला देती है, तब उसमें एक ऐसी चुम्बक-शक्ति पैदा हो जाती है जैसी कि किसी पुरुषमें सम्भव नहीं है। डा॰ मुहम्मद आलम विद्यार्थियोंके दिमागोंका खयाल रखेंगे पर बेगम साहिबा उनके दिलोंको प्रभावित करके उन्हें खरे सोनेमें ढाल देंगी। और इतना ही नहीं, चूँकि इन विद्यार्थियोंको कताई में हुनरमन्द बनना है, इसलिए मुझे पूरा यकीन है कि खुर्शीद बेगम इस हुनरको सिखाने में अपने पति और डा॰ मुहम्मद आलम दोनोंके मुकाबले कहीं ज्यादा कामयाब साबित होंगी। बेगम मुहम्मद अलीने जितना रुपया इकट्ठा कर लिया है उतना शायद उनके शौहर न कर पाते। मैं अपनी राय जाहिर कर ही चुका हूँ कि वे मौलानासे ज्यादा अच्छा भाषण करती हैं। मैं पाठकोंको राजकी एक बात बतलाता हूँ। बंगालको सक्रिय बनानेमें सबसे बड़ा हाथ श्रीमती वासन्तीदेवी और उर्मिलादेवीका ही है। मेरे सामने एक पत्र पड़ा है जिससे पता चलता है कि इन तीनों महिलाओंके बंगाल जाने और उनके गिरफ्तार होनेकी बातने बंगालकी जनताको जितना आन्दोलित किया है उतना देशबन्धु दासके महान् बलिदानने भी नहीं किया। और कुछ हो भी नहीं सकता था। इसलिए कि स्त्री तो एक मूर्तिमान बलिदान है। वह जब सच्ची भावनासे किसी कामका बीड़ा उठाती है तो पहाड़ोंको भी हिला देती है। हमने अपने देशमें स्त्रियोंके साथ दुर्व्यवहार किया है। जितनी बन सकी हमने उनकी उपेक्षा ही की है। लेकिन ईश्वरकी कृपासे अब चरखा उनकी काया पलट कर रहा है। और मुझे पूरा भरोसा है कि जब सभी नेता और सरकारके सभी विश्वासपात्र लोग जेलों में डाल दिये जायेंगे, तब भारतीय महिलाएँ पुरुषोंका बाकी बचा हुआ काम पुरुषोंसे कहीं अधिक शालीनताके साथ पूरा कर दिखायेंगी।

बाबू भगवानदास[१]

जब आचार्य कृपलानी और उनके विद्यार्थी पकड़े गये, मैंने अपने मित्रोंसे कहा था, "क्या ही अच्छा हो यदि बाबू भगवानदास गिरफ्तार हो जायें। आखिर आचार्य कृपलानी तो बनारस के रहनेवाले नहीं हैं। लेकिन बाबू भगवानदास नहीं पकड़े जायेंगे। उस समय मुझे पता नहीं था कि बाबू भगवानदास ही उस पुस्तिकाके रचयिता थे जिसे आचार्य कृपलानी बेच रहे थे। पुस्तक लिखने में लेखकने बड़ी सावधानीसे काम लिया था। दूसरे ही दिन उनके पुत्रका शुभ संवाद मुझे मिला कि बाबूजी पकड़े गये।[२] गिरफ्तारीपर वे बड़े प्रसन्न थे। बाबू भगवानदास असहयोगी हैं। ऐसे असहयोगी जो मनसा,

  1. १८६९-१९५९; प्रसिद्ध विचारक और दार्शनिक; भारतरत्न; इन्होंने काशी विद्यापीठकी स्थापना में प्रमुख भाग लिया था।
  2. देखिए "तार:श्रीप्रकाशको", १५-१२-१९२१ या उसके पश्चात्की पादटिप्पणी १।