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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

काम तो सिर्फ इतना ही है कि हम उनके दरवाजे यह उपयोगी राष्ट्रीय कपड़ा ले जायें—उनकी मर्जी हो तो खरीदें, न मर्जी हो, न सही।

योग्य पतिकी योग्य पत्नी

सूचित करते हुए हर्ष है कि मेरे पति आज सुबह गिरफ्तार। जाते हुए उनका दिल खुशीसे भरा था, यह बात आपको तारसे बतानेको कह गये। उम्मीद है मैं उनका काम अपनी बिसात-भर जारी रखूंगी। अलीगढ़ पुरअमन लेकिन पूरी तौरपर तैयार है। खुर्शीद ख्वाजा।

पतिके जेल जाने के वक्त इतना शानदार सन्देश भेजने के लिए मैं खुर्शीद बेगमको मुबारकबाद भेजता हूँ। ख्वाजा साहब[१] एक बैरिस्टर हैं जो सुख-वैभवकी गोद में पले और बड़े हुए। मैंने उनके दोनों रूप देखे हैं। एक समय था जब वे बड़ी शौकीन तबीयत के आदमी हुआ करते थे। उन्हें अपनी सुन्दरताका अहसास था जिसे वे अच्छेसे-अच्छे यूरोपीय ढंगके कपड़ोंसे और भी निखारनेकी कोशिश किया करते थे। और आज मैं उन्हें लगभग फकीरीके वाने में देखता हूँ। सबसे बहादुर और सबसे सच्चे मुसलमानोंमें उनकी गिनती है। वे भारतको भी उतना ही प्यार करते हैं जितना कि इस्लामको। मौलाना मुहम्मद अलीने जब देखा कि वे स्थायी तौरपर नेशनल मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नहीं रह पायेंगे, तब उनको ख्वाजा साहब ही एक ऐसे आदमी दिखे जो उनकी जगह ले सकते थे। ख्वाजा साहबने विश्वविद्यालयकी सेवा करने की खातिर पटनामें अपनी दिन-दिन और ज्यादा चमकती वकालतको लात मार दी। मैं जानता हूँ कि ख्वाजा साहब अपने ढंगसे अहिंसामें यकीन करते हैं, लेकिन वे कभी न टूटनेवाली हिम्मत में भी यकीन करते हैं और जान देनेका हुनर भी जानते हैं। रौलट अधिनियम लागू होने से पहलेके दिनोंमें जब अली भाइयोंकी रिहाईके लिए मैं अपने कुछ मुसलमान दोस्तोंके साथ सत्याग्रह आरम्भ करनेका विचार कर रहा था[२] तब मैंने ख्वाजा साहबसे पूछा था कि सत्याग्रहमें कितने ऐसे मुसलमानोंके शरीक होने की उम्मीद की जाये जो किसीकी जान लिये बिना अपनी जान देने को तैयार हो जायेंगे। उन्होंने उसी दम कहा था:

शुएब[३] यकीनन उनमें से एक है। वह हमारा हीरो है। और शायद मैं भी आधा शुएब हूँ। अफसोस कि इससे ज्यादाके नाम में आपको नहीं गिना सकता।

जिक्र १९१७ या १९१६ का है, लेकिन ये चन्द जुमले कहते वक्त उनके सुन्दर मुखपर मैंने जिस ईमानदारी, सचाई और विनयकी छाप देखी थी वह आज भी ताजा है। वक्त काफी बदल चुका है। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि ख्वाजा साहबके व्यक्तित्वमें कहीं कोई कोर-कसर नहीं। उनकी उम्मीद के मुताबिक बहुत सारे मुसलमान

  1. स्वाजा अब्दुल मजीद, उन दिनों अलीगढ़ विश्वविद्यालयके उप-कुलपति।
  2. देखिए खण्ड १५।
  3. शुएब कुरैशी, न्यू एराके सम्पादक।