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असहयोगी सरकारके साथ संग्राम कर रहे हैं" (पृष्ठ ३० ) । किन्तु गांधीजीने उस समय जनतासे इतना ही कहा कि हमें फिलहाल वाणी और मिलने-जुलनेकी आधार-भूत स्वतन्त्रतापर ही जोर देना है और उसे प्राप्त करना है । इस सीमित उद्देश्यके लिए किये जानेवाले संघर्ष में वे नरमदलवालोंकी भी सहानुभूति और समर्थन प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने असहयोगियोंसे बार-बार उक्त दलकी सद्भावनाएँ पानेकी कोशिश करने को कहा । पण्डित मदनमोहन मालवीयने सरकारके साथ बातचीत के लिए गोलमेज परिषद करनेकी सम्भावनाके विचारार्थ जो सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया था, गांधीजीने स्वयं उसमें भाग लिया । बम्बईके इस अधिवेशनको गांधीजीने सफल और असफल कहकर वर्णित किया : " जहाँतक उसका सम्बन्ध उपस्थित सज्जनोंकी इस उत्कट अभिलाषासे है कि वर्तमान झगड़ेका निपटारा शान्तिके साथ किया जाये तथा जहाँतक उसके द्वारा परस्पर भिन्न मत रखनेवाले लोगोंको एक ही मंचपर लानेका सवाल था, वहाँतक तो उसके काम में सफलता प्राप्त हुई है" (पृष्ठ २२६) । और वह असफल हुआ; क्योंकि उपस्थित व्यक्तियोंमें समस्याकी गम्भीरताका ठीक-ठीक एहसास दिखाई न पड़ता था । उक्त सम्मेलनने समझौतेका एक प्रस्ताव पास किया और गांधीजीकी सलाहपर कांग्रेस कार्यकारिणीने उसके अनुकूल प्रतिक्रिया प्रकट की (पृष्ठ २२२-२३) गांधीजीको प्रस्तावित गोलमेज परिषदसे ऐसी कोई आशा नहीं थी कि उसके फलस्वरूप कोई निश्चित निष्कर्ष प्राप्त किये जा सकते हैं । वे अंग्रेजी शासन के मानसको जानते थे और इसलिए उन्हें भरोसा था कि वह नाक दबाये बिना मुँह खोलनेवाला नहीं है । उन्होंने कहा : इस दृष्टिसे सोचनेपर पूर्ण स्वराज्य-की योजना तैयार करनेके लिए कोई ऐसी सभा करनेका विचार मैं इस समय अवश्य ही अनुपयुक्त मानता हूँ । भारत अपनी शक्तिका कोई अकाट्य प्रमाण अभीतक नहीं दे पाया है । माना कि उसने भारी कष्ट उठाये हैं किन्तु अभी अपने ध्येयके गौरवकी दृष्टिसे उसे और भी कष्ट सहन करना जरूरी है ।" (पृष्ठ २३१)

गोलमेज परिषद्का यह प्रस्ताव सरकारने नामंजूर कर दिया और दिसम्बर १९२१ के अहमदाबाद अधिवेशनमें पास कांग्रेस-प्रस्तावके अनुसार गांधीजीने बारडोलीमें सार्वजनिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करना तय किया । उन्होंने पहली फर-वरीको अपना विचार सूचित करने और "अवैध दमन" को समाप्त करनेकी अपनी अन्तिम प्रार्थनाके साथ वाइसरायको पत्र लिखा और उसमें वचन दिया कि यदि सरकार उक्त आशय की घोषणा कर दे तो वे देशसे कहेंगे कि " वहा लोकमतको और भी तैयार करे और भरोसा रखे कि लोकमतके बलपर देशकी वे माँगें पूरी हो जायेंगी, जिनमें किसी तरहका परिवर्तन नहीं किया जा सकता " (पृष्ठ ३२० ) । इस बीच बारडोली में सत्याग्रहकी तैयारियाँ चलती रहीं और गांधीजीको विश्वास हो गया कि संघर्ष के लिए आवश्यक शर्तोंको जनताने लगभग पूरा कर लिया है । (पृष्ठ ३१० ) । उन्होंने यह भी कहा कि सरकार भी बड़े संयमसे काम ले रही है : " सर- कारके इस व्यवहारको देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है । उसकी यह रीति प्रशंसनीय है । यह लेख लिखते समय तक दोनों ही पक्षोंके लोग प्राचीन वीर योद्धाओं की