महायुद्धके समय ही रंगरूट भरती नहीं किये थे बल्कि १९१४ में भी लन्दनमें एक घायल शुश्रूषा दलका संगठन किया था। इसलिए ऐसा करके यदि मैंने पाप किये हों तो मेरा यह पापोंका घड़ा अब पूरा भर चुका है । सरकारको सहायता देनेका कोई अवसर मैंने कभी नहीं गँवाया । उन तमाम कठिन प्रसंगोंपर दो सवाल मेरे मनमें उप- स्थित हुआ करते थे । साम्राज्यके नागरिककी हैसियतसे क्योंकि मैं पहले अपनेको इस साम्राज्यका नागरिक मानता था -- - मेरा क्या कर्त्तव्य है, और अहिंसा-धर्मके कट्टर अनुगामीकी हैसियतसे मेरा क्या कर्त्तव्य है ?
अब मैं समझ गया कि उस समय जो मैं अपनेको इस साम्राज्यका नागरिक समझता था, वह मेरी गलती थी । किन्तु उन चारों मौकोंपर मेरा यह सच्चा विश्वास था कि यद्यपि मेरा देश अभी कितना ही निर्योग्यताओंसे पीड़ित है तथापि वह स्वत- न्त्रता के मार्गपर बराबर आगे बढ़ रहा है । और मेरा विश्वास यह भी था कि लोगोंकी दृष्टिसे सरकार बिलकुल ही बुरी नहीं है तथा अंग्रेज शासक संकुचित दृष्टिवाले और जड़ होनेपर भी सच्चे हैं। मेरे विचार ऐसे थे; अतएव उस समय मैंने वैसे ही काम किये जैसे एक साधारण अंग्रेज उस परिस्थितिमें करता । उस समय मुझे इतना ज्ञान और महत्व प्राप्त नहीं हुआ था कि मैं किसी कामको स्वतन्त्र रूपसे करता । उस समय ब्रिटिश मंत्रियोंके निर्णयोंपर अदालती अहमियत के साथ विचार या छानबीन करना मेरा काम नहीं था । बोअर युद्ध, जुलू बलवे या गत महायुद्धके समय मैंने ब्रिटिश मन्त्रियोंपर 'दुर्भाव 'का लांछन कभी नहीं लगाया। मैंने यह कभी खयाल नहीं किया और न अब भी करता हूँ कि अंग्रेज लोग खास तौरपर दूसरे लोगोंसे ज्यादा बुरे हैं। मैं पहले भी मानता था और अब भी मानता हूँ कि वे उतने ही महान उद्देश्य रख सकते हैं और कार्य कर सकते हैं और साथ ही उतनी गलतियाँ भी कर सकते हैं जितनी कि कोई भी दूसरा मानव समुदाय । इसलिए मैं मानता था कि स्थानिक अथवा सामान्य आवश्यकता के समय इस साम्राज्यको अपनी क्षुद्र सेवाएँ अर्पण करके मैंने एक मनुष्य और साम्राज्य के नागरिककी हैसियतसे अपने कर्त्तव्यका पर्याप्त पालन किया है; और मैं हरएक हिन्दुस्तानीसे यह उम्मीद करता हूँ कि वह भी स्वराज्य स्थापित होनेपर इसी तरह देश के प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन करेगा। अगर ऐसे हर खयाल आने लायक मौकेपर हममें से हरएक आदमी खुद अपनी मर्जीको ही अपना कानून मानेगा और इस देशकी भावी राष्ट्रीय संसदके प्रत्येक कार्यको सोनेके कांटेमें तोलेगा तो मुझे अत्यन्त दुःख होगा । मैं तो अधिकांश मामलोंमें अपना निर्णय राष्ट्रीय प्रतिनिधियोंके हवाले कर दूंगा - हाँ, उन प्रतिनिधियोंके चुनाव में अलबत्ता मैं खासतौरपर सावधान रहूँगा । मैं समझता हूँ, दूसरे किसी तरीकेसे कोई भी प्रजासत्तात्मक सरकार एक दिन भी नहीं टिक सकेगी।
परन्तु अब तो मेरी दृष्टिमें सारी स्थिति ही बदल गई है। मैं समझता हूँ अब
मेरी आँखें खुल गई हैं। अनुभवोंने मुझे होशियार बना दिया है । अब मैं वर्तमान
१. देखिए खण्ड १४ और १५ ।
२. देखिए खण्ड १२ ।