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सन्देश : बम्बईकी सार्वजनिक सभाके लिए

"केवली "" बन सकेगा, उसके लिए केवल ज्ञान अप्राप्य नहीं होगा । इसलिए मैं आपसे यह नहीं कहता कि आप संस्कृत पढ़ें, या भगवती सूत्रका पाठ करें। आप पढ़ें अथवा न पढ़ें- - इस विषय में मैं तटस्थ हूँ ।

वढवाणमें जब जयन्ती मनाई गई थी तब " राजचन्द्र- पुस्तकालय " खोलने का निश्चय किया गया था । पुस्तकालयकी इमारत बनवानेकी बात भी हुई थी । उसके सम्बन्धमें मैंने बहुत ज्यादा उत्साह प्रकट नहीं किया था। मैंने कहा था इमारत हो लेकिन अगर उसमें आत्मा न हो तो इमारत तो केवल ईंटकी बनी हुई है । आज तीन वर्षके बाद हमारा वह संकल्प सफल हो रहा है । सब अनुकूल संयोग इकट्ठे हो गये हैं । उसके लिए हमें मुनि जिनविजयजी जैसे योग्य पुरुषकी सेवाएँ प्राप्त हुई हैं। पुरातत्व मन्दिरका पुस्तकालय भी उसीमें जोड़ दिया गया है। जो कोई वहाँ जानेकी तकलीफ उठायेगा उसे मुक्तभावसे उसका लाभ मिलेगा ।

आपने जो कुछ सुना है उसे अपने साथ ले जाना और अपने जीवनमें उतारना । जितना आपको टीका योग्य जान पड़े उतना तुरन्त त्याग देना लेकिन जो लेने योग्य जान पड़ा हो, कर्णप्रिय लगा हो, हृदयको अच्छा लगा हो उसका तो आज ही से अमल करना शुरू कर देना ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २४-११-१९२१
 
१८८. सन्देश : बम्बईकी सार्वजनिक सभाके लिए

१७ नवम्बर, १९२१ के पूर्व मुझे दुःख है कि मैं स्वयं इस बार बम्बई में एक दिनके लिए भी नहीं आ सकता। लेकिन मैं यहाँ जिस कार्यमें रुका हुआ हूँ वह कार्य बम्बई में किये जानेवाले सुन्दर कार्यसे भी अधिक महत्वका है, ऐसा जानकर आप मुझे क्षमा करेंगे, इस बातकी मुझे पूरी-पूरी उम्मीद है ।

अगर आप बम्बईको सुशोभित करना चाहते हैं तो :

१. राजकुमारके स्वागतार्थं होनेवाले किसी भी समारोहमें एक बच्चातक न जाये ।
२. तमाशोंको मुफ्त में देखनेका आयोजन किया गया हो तो भी उसमें छोटे-बड़े कोई
न जायें; तमाशा देखनेके लिए और बहुत सारे दिन पड़े हुए हैं ।
३. कोई स्त्री या पुरुष १७ तारीखको बिना किसी कामके घरसे बाहर निकले ही
नहीं ।


१. जिसे विशुद्ध ज्ञान प्राप्त हो गया है ।
२. लेकिन बादमें उन्हें आनेके लिए राजी कर लिया गया था । देखिए “भाषण: बम्बईको सार्व-
जनिक सभामें", १७-११-१९२१ ।