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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


करता है वह इसमें पड़े बिना रह ही नहीं सकता। इसमें से राजनैतिक, आर्थिक आदि विषयों के परिणाम तो सुन्दर आयेंगे ही, लेकिन सबसे सुन्दर परिणाम तो यह होगा कि इस प्रवृत्तिसे बहुत सारे लोगोंका उद्धार हो जायेगा, बहुत सारे मोक्षके योग्य बन जायेंगे। अगर सालके अन्तमें हमें ऐसा अनुभव न हो तो मेरे लिए जीना दूभर हो जायेगा ।

वे बहुत बार कहा करते थे कि अगर कोई मुझे चारों ओरसे बरछी भौंके तो मैं उसे सह सकता हूँ, लेकिन जगतमें जो झूठ, पाखण्ड और अत्याचार चल रहा है, धर्म के नामपर जो अधर्म किया जा रहा है उसकी बरछी सहन नहीं होती । अत्याचारोंपर उन्हें रोष आता था और मैंने उन्हें अनेक बार क्रोधित होते हुए देखा है। उनके लिए सारा जगत् उनका सगा था । अपने भाई अथवा बहनको मरते देख हमें जो क्लेश होता है उतना ही क्लेश उन्हें जगतमें दुःख और मृत्युको देखकर होता था । अगर कोई कहता कि लोग अपने पापके कारण दुःख पा रहे हैं, तो वे कहते : लेकिन उन्हें पाप करना क्यों पड़ा ? जब पुण्यको सरल मार्ग नहीं मिलता और बड़ी-बड़ी खाइयों और पर्वतोंको लाँघना पड़ता है तब उसे हम कलिकाल कहते हैं । उस समय जगतमें पुण्य बहुत नहीं दिखाई देता, स्थान-स्थानपर पाप ही दिखाई देता है । पुण्यके नामपर पाप चल पड़ता है । वैसी स्थिति में अगर हम दयाधर्मका पालन करना चाहें तो हमारी आत्मा क्लेशसे विकल होनी ही चाहिए। हमें ऐसा लगेगा कि ऐसी स्थितिमें जीवित रहनेकी अपेक्षा तो देह जर्जरित हो जाये अथवा उसका अवसान हो जाये, यही ज्यादा अच्छा है ।

रायचन्दभाईका इतनी कम उम्र में देहावसान हो गया, इसका कारण भी मुझे यही लगता है । यह सच है कि वे बीमार थे, लेकिन जगतके तापका जो कष्ट उन्हें था वह उनके लिए असह्य था । अगर उन्हें केवल शारीरिक कष्ट ही होता तो वे जरूर उसपर विजय पा लेते। लेकिन उन्हें लगा कि ऐसे विषम कालमें आत्मदर्शन कैसे हो सकता है ? यह उनके दयाधर्मका सूचक है ।

दयाधर्मकी परिसीमा खटमलको न मारनेमें नहीं है । यह सच है कि खटमलको नहीं मारना चाहिए, लेकिन खटमलोंकी उत्पत्तिको भी रोकना चाहिए। खटमलोंको मारने में जितनी क्रूरता है उससे कहीं अधिक क्रूरता उनको उत्पन्न होने देने में है ।

हम सब खटमलोंको पैदा करते हैं, श्रावक भी ऐसा ही करते हैं और में वैष्णव भी ऐसा करता हूँ। हम शौचादिके नियमोंसे परिचित ही नहीं हैं। परिग्रहको बढ़ाते समय हम कोई विचार नहीं करते और अनावश्यक वस्तुओंके परिग्रहसे खटमल नहीं होंगे तो और क्या होगा ?

खटमल, मच्छर आदि क्षुद्र जन्तुओंको न मारने में दयाधर्म है। लेकिन इससे बढ़कर दयाधर्मं तो यह है कि हम मनुष्यकी हत्या न करें। मनुष्यको मारें अथवा खटमलको - यह प्रश्न उपस्थित होनेपर हम क्या करेंगे ? मनुष्यको मारकर मच्छरको उबारनेका प्रसंग आना भी सम्भव है । मैं तो इन दोनों तरहके प्रसंगोंसे छुटकारा पानेका मार्ग बताता हूँ और वह है दयाधर्मं ।

कविश्रीका कहना था कि " जैन-धर्म अगर श्रावकोंके हाथमें न गया होता तो इसके तत्त्वोंको देखकर जगत चकित हो उठता । बनिये तो जैन-धर्मके तत्त्वोंको बदनाम