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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस प्रकार हमारे सामने यह ठोस उदाहरण मौजूद है जिससे सुधारों और उत्तरदायित्वका सही रूप प्रकट हो जाता है। मुझे इसमें सन्देह नहीं कि मन्त्री महाशय जो कुछ करते हैं वह इसी विश्वाससे करते हैं कि इसमें लोगोंका हित है। जब-जब अंग्रेज अधिकारियोंने जबरदस्ती कुछ भी, यहाँतक कि रौलट ऐक्ट भी, हमपर लादा, तब-तब उन्होंने क्या उसका समर्थन यही कहकर नहीं करना चाहा कि यह तो प्रजाके कल्याण के लिए ही है। असहयोगका संघर्ष अन्य बातोंके सिवा, आश्रयदानकी भावनाके विरुद्ध भी है। हम कुछ अच्छा करना सीखें उसके पूर्व हमें इस बातकी स्वाधीनता जरूर होनी चाहिए कि हम अपने प्रयत्नसे जो चाहें सो करें फिर वह बुरा भी क्यों न हो। "स्वाधीनता" भी हमपर "जबरदस्ती" न लादी जाये। जनसत्ताकी भावना तो यही चाहती है कि मन्त्री या तो लोकमतके आगे सिर झुका दे या इस्तीफा पेश कर दे। सब प्रकारसे दोष रहित सुधार कार्यों में भी उसे प्रबुद्ध जनमतको धैर्यपूर्वक अपने साथ लेकर चलना चाहिए।

चिरला-पेरलाके बहादुर लोगोंने सरकारसे कह दिया है कि वह उससे जो बने सो कर ले, वे उसके दमनके आगे नहीं झुकेंगे और नगरपालिका गठित करनेसे इनकार कर दिया है। उन्हें ऐसा करनेकी आवश्यकता नहीं थी। वे "स्वराज्य" तक इसका इन्तजार कर सकते थे। परन्तु उन्होंने इसके विपरीत करना अच्छा समझा।

इसकी जवाबदेही पूर्णतः उन्हींपर है। अब वे किसी भी हालत में अपनी टेक न छोड़ें। उत्तेजना और सनसनीकी हालत में रोषको पास फटकने न दें। वे सरकारको बड़ी खुशी के साथ वह जो चाहे, इसकी सजा देने दें। अपने इस नम्र परन्तु अटल कष्ट सहनकी बदौलत वे स्वयं अपनेको तथा भारत-माताको गौरवसे भूषित करेंगे एवं देशको अहिंसा और शान्तिका पदार्थ पाठ पढ़ायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-८-१९२१

९. पत्र: मणिबहन पटेलको

डिब्रूगढ़, [असम ]
२५ अगस्त, १९२१

चि० मणि[१],

तुम्हारा पिछला पत्र में अपने साथ लिये घूमता रहा हूँ। काका विट्ठलभाईको समझाना बड़ा मुश्किल काम मानता हूँ। अपनी इस उम्र में और एक प्रकारकी लड़ाईमें[२] फतह पाने की मान्यता बन जानेके बाद अब उन्हें नये प्रकारको ग्रहण करना कठिन मालूम होता है। हम धीरज रखकर उनका मतभेद सहन करके अपने रास्ते चलते रहें, इसके सिवा और कोई उपाय मुझे दिखाई नहीं पड़ता।

  1. वल्लभभाई पटेलकी पुत्री।
  2. विधान सभाकी सदस्यता के लिए।