पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४७७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४५
परीक्षा

जहाँकी-तहाँ रहेगी। सराफके यहाँसे तो वह लौटे बिना नहीं रह सकता। और इस बीच वह जिन-जिन हाथोंसे होकर गुजरा है उन सबको भी उसके स्पर्शसे थोड़ी-बहुत खोट पहुँची होगी। इसी प्रकार हममें जो ‘रंगे सियार’ होंगे वे जरूर आखिरी मंजिलमें पिछड़ जायेंगे।

जिसकी इच्छा हो वह मैदानमें आये। जिनसे हो सके वे इसमें कूदें। मैं सबको निमन्त्रण देता हूँ। परन्तु जो भूखे हों वही थालीपर बैठें। अगर दूसरे लोग बैठ जायेंगे तो पछतायेंगे। जिसे भूख नहीं है, उसे बढ़िया-बढ़िया व्यंजन भी अच्छे नहीं लगते। जो भूखा है उसे रूखी-सूखी बाजरेकी रोटी भी मीठी लगती है। इसी प्रकार जो लोग असहयोगका अर्थ समझ चुके हैं, जो धर्मका मर्म जान चुके हैं, वही इसमें टिक सकेंगे। जो समझ चुका है उसके लिए सब बातें आसान हैं। जो समझ नहीं पाया है उसके लिए सब बातें कठिन हैं। अन्धेके लिए आईना किस कामका?

अवसर कठिन है। बिना विचारे कदम उठाकर पीछे पछतानेका मौका न आये। अगर कोई भी तहसील तैयार न हो तो गुजरात हुंडी वापस कर सकता है; परन्तु उसपर सही कर चुकनेके बाद तो उसको सिकारे बिना गुजर ही नहीं। अभी गुजरातके लिए मौका है। पर बीड़ा उठा लेनेके बाद फिर पीठ नहीं दिखानी है। अगर शेखीमें आकर बीड़ा उठा लिया हो और तब कुछ न बन पड़े तो फिर हम जीवित भी मरेके समान हो जायेंगे। आज तो गुजरातको जरा भी घबरानेका या संकोच करनेका कारण नहीं है।

अब यह विचार करना चाहिए कि हमारी योग्यता किन-किन बातोंपर अव-लम्बित है―

(१) शान्ति

(२) स्वदेशी

(३) हिन्दू-मुस्लिम एकता

(४) छुआछूतको दूर करना।

ये सब बातें तो आसान हैं।

पर कानूनकी सविनय अवज्ञा? इससे भी हम लोग अनजान नहीं हैं। जेल तो उसके साथ है ही। उसे भोग लेंगे। बड़े-बड़े लोग गये हैं और सब देख आये हैं तो फिर हम क्यों ऐसा नहीं कर सकेंगे? अतएव यह तो कोई बड़ी बात नहीं रही।

पर――?

मार्शल लॉ जारी हो जाये तो? गुरखोंकी फौज आये तो? गोरी-सेना चढ़ आये तो? और फिर संगीने भौंके, गोलियोंकी बौछार करें, पेटके बल रेंगायें तो? ठीक है, यह भी हो जाये। आने दो सेनाको। देखें वह हमें पेटके बल कैसे चलाती है। मर मिटेंगे, पर पेटके बल न रेंगेंगे। संगीनें भौंकना हो तो भौंक दें। प्लेग, हैजे या किसी बीमारीसे मरने के बदले संगीनोंसे मरना अच्छा है। और अगर गोलियाँ भी दागें तो हम पीठ दिखानेवाले नहीं हैं। अब तो इतना बल आ गया है कि हम गिल्ली-डंडेके खेलकी तरह, सीना तानकर गोलियोंकी बौछारको झेल लेंगे। गुरखोंको