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गुजरातके अनुभव

सशर्त दान

गोधरामें श्रीमती कोठावाला अपने स्वभावके अनुसार सभामें आईं। उन्होंने मुझसे कहा "आपका सब काम मुझे पसन्द आता है लेकिन आपका असहयोग मुझे पसन्द नहीं । आप लॉर्ड रीडिंगको कमसे-कम एक अवसर अवश्य दें।"

मैंने कहा: “मैं निस्सन्देह सबको अवसर देना चाहता हूँ। अगर वे न्याय करते हैं तो इसका अर्थ [ हमारी ओरसे ] सहयोग ही होगा। आप ही उन्हें समझायें कि वे पश्चात्ताप करें, अपने किये हुए गुनाहोंकी भारतसे माफी माँगें और न्याय करें । तब कोई झगड़ा ही न रहेगा ।"

"आप मुझसे कहें कि आप उन्हें अवसर देंगे। आप उन्हें लिखेंगे कि यदि आप न्याय प्रदान करेंगे तो हम असहयोगको छोड़ देंगे ? "

मैंने कहा :"समय मिलने पर मैं अवश्य लिखूंगा। लेकिन लॉर्ड रीडिंग इतना तो जानते ही हैं ।

इस भली बहनने ऐसी शर्तके साथ पचास रुपये दिये। अगर सब बहनें ऐसी ही शर्तके साथ रुपया दें तो भी मेरा खयाल है कि जल्दी ही एक करोड़ रुपया इकट्ठा हो जायेगा ।

व्यवस्था

मुझे सब स्थानोंपर व्यवस्थामें सुधार दिखाई दिया; लेकिन सबसे ज्यादा व्यवस्था तो मुझे सूरतमें दिखाई पड़ी। मैं जहाँ-जहाँ जाता था वहाँ-वहाँ लोगोंको पहलेसे ही अच्छी तरहसे समझा दिया जाता था और इसी कारण कम शोरगुल और कम हड़बड़ीमें काम हो जाता था। लोगोंसे पहलेसे कह रखनेके कारण पैसे भी आसानीसे इकट्ठे हो जाते थे। सूरतकी बहनोंने हीरेकी अँगूठियाँ भी दानमें दीं।

संदेरका अनुभव

सूरतमें नगरपालिकाने मुझे मानपत्र भेंट किया जबकि मुझे मालूम हुआ कि रांदेरकी नगरपालिकाने मानपत्र देनेसे इनकार कर दिया। तिसपर भी वहाँके हिन्दू और मुस्लिम नवयुवक मुझे मानपत्र देनेके लिए आगे आये। एक मानपत्र नागरिकोंकी ओरसे तथा दूसरा खिलाफत [ समिति ] की ओरसे दिया गया। रास्ते भी सजाये हुए थे । तथापि मैंने देखा कि वहाँके नेता इन सबसे दूर ही रहे। उन्होंने सिर्फ उतना ही उत्साह दिखाया जितना कि बच्चे दिखाते हैं। मैंने बहुत प्रयत्न किया लेकिन रांदेरमें इस स्थितिमें मैं बहुत कम पैसे इकट्ठे कर सका । एक मुसलमान भाईने हमारे हाथमें पाँच रुपयेका नोट दिया, एक बहनने पाँच रुपये दिये और हर रोज दो घंटे चरखा चलाने तथा विदेशी वस्त्र न पहननेकी प्रतिज्ञा की। रांदेर जैसा रूखा अनुभव तो मुझे अपनी सारी यात्राके दौरान कहीं नहीं हुआ ।

युवकोंको मेरी सलाह है कि वे इससे हतोत्साहित न हों। उन्हें मानपत्र देनेका प्रयत्न छोड़ देना चाहिए और चन्दा इकट्ठा करनेके लिए अवश्य जुट जाना चाहिए । अच्छे, मेहनती और नम्र नवयुवक बहुत कुछ कर सकेंगे। मध्यम वर्ग उन्हें पैसा देगा ।