पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५३८

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। । ५०६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय वाला सस्ता कपड़ा त्याग दिया है और वे मॅहगे विदेशी वस्त्रोंके पीछे पागल हैं। आभूषणोंके मामलेमें ब्राह्मण घरोंकी स्त्रियाँ सबसे आगे रहती हैं और उनमें भी श्री वैष्णव घरानोंकी स्त्रियाँ । पुरुष तो सादगीका अच्छा जीवन अपना रहे है, पर हमारी महिलाएँ फिजूलखर्च बनती जा रही हैं। मन्दिरों में ईश्वराधनाके लिए जाते समय भी उनको सादगीका पहनावा अपनानेकी बात नहीं सूझती। वे कीमतीसे-कीमती जवाहरात और ज्यादासे-ज्यादा कीमती जरी इत्यादि पहन- कर मन्दिरोंमें जाना चाहती हैं। मैं ऐसी कई ईमानदार महिलाओंको जानता हूँ जो सिर्फ इसीलिए मन्दिर नहीं जाती कि उनके पास कीमती वस्त्र और आभूषण नहीं हैं। मेरे ये वैष्णव मित्र जो-जो कहते हैं उस सबकी सचाईपर विश्वास करनेका मेरा मन नहीं होता। ये सज्जन असहयोगी है और वकील है। मैं उनके इस कथनपर अविश्वास करना चाहता हूँ कि तड़क-भड़क और दिखावेके मामले में तमिल बहनें अन्य सभी प्रदेशोंकी महिलाओंसे आगे हैं। फिर भी उनके पत्रसे तमिल बहनोंको अपने बारेमें कुछ सोचनेकी प्रेरणा तो मिलनी चाहिए। उनको फिरसे अपनी पहलेकी सादगी अपनानी चाहिए। ईश्वर निश्चय ही उन स्त्रियोंसे कहीं ज्यादा प्रसन्न होगा जो अपने हृदयकी शुचिताके प्रतीकस्वरूप बिलकुल साफ धुली खादी पहनती हैं। हमारे मन्दिर शान-शौकत और दिखावेके लिए नहीं हैं; वे तो आराधकोंकी मनःस्थितिके अनुकूल विनम्रता और सादगीकी अभिव्यक्तिके लिए है। मद्रास अहातेकी महिलाओंमें इस बुराईके खिलाफ निरन्तर प्रचार होता रहना चाहिए। मध्य प्रान्तमें खादी-टोपी मध्य प्रान्तमें सरकारी कर्मचारियों द्वारा खादीकी टोपियाँ पहनना अधिकृत रूपसे गैरकानूनी माना जाने लगा है। मध्य प्रान्त परिषद्ने सार्वजनिक रूपसे इस निर्णयका समर्थन क दिया है। मध्य प्रान्त सरकार द्वारा निर्धारित यह नियम परले दर्जेकी गुलाम मनोवृत्तिका सूचक है और खतरनाक है। यदि खादीकी टोपी असहयोग दलकी निशानी है, तो फिर खादीका इस्तेमाल भी गैर-कानूनी माना जा सकता है और इसके लिए सजा दी जा सकती है। और इस तरह तो सरकारी शब्द-कोषमें स्वदेशीको भी जुर्म माना जा सकता है। विदेशी वस्त्र आजसे दो सदी पहले भारतपर जबरन लादे गये थे। और अब भारतको फिरसे स्वदेशी अपनानेसे रोकने में जबरदस्ती की जा रही है। आम जनताकी रायका खयाल रखनेवाली किसी भी नेकनीयत सरकारको सरकारी कर्मचारियों द्वारा खादीके इस्तेमालको बढ़ावा देना चाहिए था। मैं यह नहीं मानता कि खादीकी टोपी असहयोगकी निशानी है। मैं ऐसे कई लोगोंको जानता हूँ जो असहयोगको ठीक नहीं समझते पर उन्होंने सुविधा और स्वदेशीकी निशानीके तौरपर खादीको टोपीको अपना लिया है। कांग्रेसने अभीतक सरकारी कर्मचारियोंसे नौकरियाँ छोड़नेके लिए नहीं कहा है, लेकिन मैं उनसे इतनी उम्मीद जरूर करता हूँ कि वे अपनी पसन्दका पहनावा बरकरार रखनेकी हिम्मत दिखायेंगे और इस तरह Gandhi Heritage Portal